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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Sep 21st, 08:09 by lovelesh shrivatri
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सोशल मीडिया का जितना कम इस्तेमाल किया जाए उतना ही बेहतर है। बच्चों के मामलों में तो यह सुझाव अमल में लाना और भी जरूरी है। यही कारण है कि कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी कहा है- सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए भी एक उम्र सीमा तय की जानी चाहिए। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में यह भी कहा है कि यह सीमा कम से कम 21 वर्ष होनी चाहिए। कोर्ट की चिंता वाजिब भी है, क्योंकि आज के दौर में छोटे-छोटे बच्चों व किशोरों के हाथो में स्मार्टफोन आते जा रहे है। दुनिया भर में अभिभावक भी बच्चों को लग लग रही सोशल मीडिया की लत से परेशान है।
सही मायने में आज के दौर में आम आदमी खाते-पीते, उठते-बैठते हुए भी मोबाइल पर नजर गड़ाए रहता है। वजह है विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कुछ नया देखने की चाहत। बच्चों में यह चाहत लत का रूप लेने लगी है। बड़ी चिंता इस बात की है कि सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म इनके इस्तेमाल को लेकर आयु सीमा को लेकर चुप ही है। जहां कहीं उम्र का बंधन है भी तो महज दिखावटी। क्योंकि उम्र के सत्यापन की पुख्ता व्यवस्था कहीं है ही नहीं। इसीलिए फेक जन्म तिथि अंकित पर सोशल मीडिया अकाउंट खूब बन रहे है। वैसे इंटरनेट की दुनिया में यह नहीं देखा जाता कि सोशल मीडिया पर उपयोगकर्ताओं की उम्र के आधार पर सामग्री परोसी जाए। न ही ऐसा करना संभव है। वहां तो जो कुछ उपलब्ध है वह सबके लिए है, भले ही उपयोगकर्ता बच्चे ही क्यों न हो। सोशल मीडिया के दुरूपयोग के खतरे अलग है। इनमें भी बच्चों को भागीदार बनाया जाने लगा तो समाज के लिए बड़ा खतरा बनते देर नहीं लगने वाली। मोबाइल के अधिक उपयोग से सेहत को लेकर जो खतरे हैं वे तो पहले ही सामने आने लगे है। अमरीकी में चिकित्सकों ने एक शोध के जरिए यह बताया था कि जो बच्चे अपने सोशल अकाउंट को बार-बार देखते हैं, उनके ब्रेन का आकार छोटा होने लगता है। कर्नाटक हाईकोर्ट की चिंता पर सरकार ही कोई फैसला करें, इतना काफी नहीं है। बड़ी जिम्मेदारी अभिभावकों पर ही है। अगर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सोशल मीडिया से दूर रहें तो पहले उनको खूद पर अनुशासन कायम करना होगा।
सही मायने में आज के दौर में आम आदमी खाते-पीते, उठते-बैठते हुए भी मोबाइल पर नजर गड़ाए रहता है। वजह है विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर कुछ नया देखने की चाहत। बच्चों में यह चाहत लत का रूप लेने लगी है। बड़ी चिंता इस बात की है कि सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्म इनके इस्तेमाल को लेकर आयु सीमा को लेकर चुप ही है। जहां कहीं उम्र का बंधन है भी तो महज दिखावटी। क्योंकि उम्र के सत्यापन की पुख्ता व्यवस्था कहीं है ही नहीं। इसीलिए फेक जन्म तिथि अंकित पर सोशल मीडिया अकाउंट खूब बन रहे है। वैसे इंटरनेट की दुनिया में यह नहीं देखा जाता कि सोशल मीडिया पर उपयोगकर्ताओं की उम्र के आधार पर सामग्री परोसी जाए। न ही ऐसा करना संभव है। वहां तो जो कुछ उपलब्ध है वह सबके लिए है, भले ही उपयोगकर्ता बच्चे ही क्यों न हो। सोशल मीडिया के दुरूपयोग के खतरे अलग है। इनमें भी बच्चों को भागीदार बनाया जाने लगा तो समाज के लिए बड़ा खतरा बनते देर नहीं लगने वाली। मोबाइल के अधिक उपयोग से सेहत को लेकर जो खतरे हैं वे तो पहले ही सामने आने लगे है। अमरीकी में चिकित्सकों ने एक शोध के जरिए यह बताया था कि जो बच्चे अपने सोशल अकाउंट को बार-बार देखते हैं, उनके ब्रेन का आकार छोटा होने लगता है। कर्नाटक हाईकोर्ट की चिंता पर सरकार ही कोई फैसला करें, इतना काफी नहीं है। बड़ी जिम्मेदारी अभिभावकों पर ही है। अगर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे सोशल मीडिया से दूर रहें तो पहले उनको खूद पर अनुशासन कायम करना होगा।
