Text Practice Mode
JR CPCT INSTITUTE, TIKAMGARH (M.P.) || ॐ || मार्गदर्शन हमारा- सफलता आपकी || ॐ || सीपीसीटी क्लासेस बैंच स्टार्ट ~ 7000315619
created May 3rd 2024, 07:59 by ram saxena
0
506 words
            4 completed
        
	
	0
	
	Rating visible after 3 or more votes	
	
		
		
			
				
					
				
					
					
						
                        					
				
			
			
				
			
			
	
		
		
		
		
		
	
	
		
		
		
		
		
	
            
            
            
            
			 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...
			
				
	
    00:00
				संपूर्ण विश्व मनुष्य शरीर की तरह ही एक स्वतंत्र पिण्ड जैसा है उसमें जीवों की गति उसी प्रकार संभव है, जिस तरह शरीर में अन्नकणों की गति होती है। अब इस मान्यता का खण्डन करना सम्भव हो गया है कि अन्य ग्रहों के तापमान की स्थिति में प्राणी का रहना संभव नहीं। यह ठीक है कि शरीर का जो स्वरूप पृथ्वी पर है, वह अन्यत्र न हों। इस दृष्टि से बृहस्पति, शनि, यूरेनस, नेप्च्यून, आदि ग्रहों को देखें तो लगता है कि वहां जीवन नहीं है, वहां मीथेन गैस की अधिकता है। बृहस्पति ग्रह पर घने बादल छाये रहते हैं। बादलों का विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, उनमें हाइड्रो जन का संमिश्रण रहता है। अमोनिया और मीथेन गैसें भी अधिकता से पाई जाती है। बादलों में सोडियम धातु के कण भी पाये जाते हैं, इससे बृहस्पति के बादल चमकते हैं। इस परिस्थितियों में हालांकि जीवाणुओं की शक्ति नष्ट हो जाती है, पर जिस तरह पृथ्वी पर ही विभिन्न तापमान और जलउष्मा की विभिन्न स्थितियों में मछली, सांप, मगर, कीट, वनस्पति, फलपौधे, स्तनधारी गोलकृमि जैसे जीव पाये जाते हैं तो अन्य ग्रहों पर इस तरह की स्थिति संभाव्य है और इन तरह चंद्रमा आदि पर भी जीवन संभव हो सकता है भले ही शरीर की आकृति और आकार कुछ भी क्यों न हो। इस तथ्य की पुष्टि में अमरीकी वैज्ञानिक मिलर का प्रयोग प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। मिलर ने एक विशेष प्रकार के उपकरण में अमोनिया, मीथेन, पानी और हाइड्रो जन भर कर उसमें बिजली गुजारी। फिर उस पात्र को सुरक्षित रख दिया गया। लगभग दस दिन बाद उन्होंने ने पाया कि कई विचित्र जीवअणु उसमें उपज गए हैं, कुछ तो एमीनो एसिड थे। इससे यह साबित होता है, वातावरण की विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न प्राणियों का जीवन होना संभव है। यह भी संभव है कि उनमें से कुछ इतने शक्तिशाली हों कि दूर ग्रहों पर बैठे हुए अन्य ग्रहों जिन में पृथ्वी भी सम्मिलित है के लोगों पर शासन कर सकते हों। उन्हें दण्ड दे सकते हों अथवा उन्हें अच्छी और उच्च स्थिति प्रदान कर सकते हों।हों लोकोत्तर निवासी, पृथ्वी के लोगों को अदृश्य प्रेरणायें और सहायतायें भी दे सकते हैं। इस दृष्टि से यदि हम आर्य ग्रन्थों में दिये गये विवरण और अनुसन्धानों को कसौटी पर उतारें, तो यह मानना होगा कि वे सत्य हैं, आधारभूत हैं। अच्छेबुरे कर्म के अनुसार जीवात्मा को अन्य लोकों में जाना होता होगा और वहां वह चित्रविचित्र अनुभूतियां होती होंगी हों । इन वैज्ञानिक तथ्यों को देखते हुए यदि कोई कहे कि मनुष्य को शुभ और सत्कर्म करना चाहिये, ताकि वह ऊर्ध्व लोकों का आनन्द ले सके तो उसे हास्य या उपेक्षा की दृष्टि से नहीं, हीं वैज्ञानिक दृष्टि से तथ्यपूर्ण अनुभव करना चाहिये। यह मनुष्य शरीर पाना बडा दुर्लभ है। यह स्वर्ग की प्राप्ति का साधन है, इसलिये इस मनुष्य शरीर को प्राप्ति करके इसे शुभ कामो में लगाना चाहिये, जिससे अवनति को प्राप्त न हो। पथभ्रष्ट न हो। जीवात्मा की अमरता को स्वीकार कर हमें भी ऊर्ध्व लोकों की प्राप्त के प्रयत्न करने चाहिये। अच्छे कर्म से आत्मा को विकसित करना उसका सरल उपाय है। 
			
			
	         saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...