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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Jul 31st 2024, 07:45 by lucky shrivatri
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देश के स्वास्थ्य परिदृश्य से आ रही यह खबर चिंता जगाने वाली है कि पांच साल में भारत में इलाज का खर्च लगभग दोगुना हो गया है। इलाज में अस्पताल, ऑपरेशन, चिकित्सकीय सामग्री और दवाइयों का खर्च शामिल है। इलाज का खर्च दोगुुना होना विकसित से विकसित देश तक वहन नहीं कर सकते है। अंदाजा लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लिए यह कितनी बड़ी चुनौती है और संकट पैदा कर सकता है।
उस देश में जहां लगभग साठ प्रतिशत आबादी के पास तो पेट भरने के लिए पर्याप्त आजीविका नहीं है, वे इलाज का खर्च वहन कर पाएंगे, संभव नहीं है। तीन साल से ज्यादा समय हो गया है। वे बीमारी में सामान्य इलाज तक अपने स्तर पर लेने में सक्षम नहीं है, तो दोगुना महंगा उपचार वहन करने के बारे में तो वे सोच नहीं सकते। आमदनी की तुलना में जिस दर से सभी क्षेत्रों में मंहगाई बढ़ रही है, उसके हिसाब से तो गरीबी रेखा से ऊपर के वर्ग के लिए इलाज बूते से बाहर की बात होता नजर आ रहा है। इस तरह के हालात में स्वास्थ्य बीमा काफी मदद कर सकता है, लेकिन विबंडना यह है कि देश में व्यक्तिगत स्तर पर करवाए जाने वाले स्वास्थ्य बीमे की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। केवल 37 प्रतिशत जनसंख्या ही स्वास्थ्य बीमे के कवर में है। सेहत से जुड़ी मुश्किलें यही तक सीमित नहीं है। इलाज महंगा होने के स्वास्थ्य बीमा भी हर साल करीब 15 प्रतिशत की दर से महंगा होता जा रहा है।
निश्चित रूप से यह एक बड़ी चुनौतीपूर्ण स्थिति है जिससे निपटने के लिए सरकार को व्यापक स्तर पर उपाय करने होगे। यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए राजस्थान व तेलंगाना समेत कुछ राज्यों की अलग-अलग स्वास्थ्य बीमा योजनाएं हैं, तो दूसरी और आयुष्मान योजना है जो भाजपा शासित राज्यों तक ही सीमित है। केंद्र सरकार का उद्देश्य सभी प्रदेशों को विश्वास में लेकर एक ऐसी योजना लागू करना होना चाहिए, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं से कोई भी अछूता न रहे। केंद्र और संबद्ध राज्यों को ऐसी योजना के सुचारू क्रियान्वयन की अड़चनों को भी दूर करना होगा। जेनेरिक दवाओं की पहुंच बढ़ाने के प्रयासों को भी पुख्ता करना होगा।
उस देश में जहां लगभग साठ प्रतिशत आबादी के पास तो पेट भरने के लिए पर्याप्त आजीविका नहीं है, वे इलाज का खर्च वहन कर पाएंगे, संभव नहीं है। तीन साल से ज्यादा समय हो गया है। वे बीमारी में सामान्य इलाज तक अपने स्तर पर लेने में सक्षम नहीं है, तो दोगुना महंगा उपचार वहन करने के बारे में तो वे सोच नहीं सकते। आमदनी की तुलना में जिस दर से सभी क्षेत्रों में मंहगाई बढ़ रही है, उसके हिसाब से तो गरीबी रेखा से ऊपर के वर्ग के लिए इलाज बूते से बाहर की बात होता नजर आ रहा है। इस तरह के हालात में स्वास्थ्य बीमा काफी मदद कर सकता है, लेकिन विबंडना यह है कि देश में व्यक्तिगत स्तर पर करवाए जाने वाले स्वास्थ्य बीमे की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। केवल 37 प्रतिशत जनसंख्या ही स्वास्थ्य बीमे के कवर में है। सेहत से जुड़ी मुश्किलें यही तक सीमित नहीं है। इलाज महंगा होने के स्वास्थ्य बीमा भी हर साल करीब 15 प्रतिशत की दर से महंगा होता जा रहा है।
निश्चित रूप से यह एक बड़ी चुनौतीपूर्ण स्थिति है जिससे निपटने के लिए सरकार को व्यापक स्तर पर उपाय करने होगे। यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के लिए राजस्थान व तेलंगाना समेत कुछ राज्यों की अलग-अलग स्वास्थ्य बीमा योजनाएं हैं, तो दूसरी और आयुष्मान योजना है जो भाजपा शासित राज्यों तक ही सीमित है। केंद्र सरकार का उद्देश्य सभी प्रदेशों को विश्वास में लेकर एक ऐसी योजना लागू करना होना चाहिए, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं से कोई भी अछूता न रहे। केंद्र और संबद्ध राज्यों को ऐसी योजना के सुचारू क्रियान्वयन की अड़चनों को भी दूर करना होगा। जेनेरिक दवाओं की पहुंच बढ़ाने के प्रयासों को भी पुख्ता करना होगा।
