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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 6th, 04:59 by lovelesh shrivatri
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सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही एक टिप्पणी में कहा कि यदि डॉक्टर को जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए कानूनी रूप से बाध्य किया जाए, तो दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को मंहगी और ब्रांडेड दवाएं लिखने के लिए रिश्वत देने की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है। कोर्ट ने दवा कंपनियों की अनैतिक मार्केटिंग पर तत्काल रोक लगाने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की आवश्यकता पर बल दिया। कोर्ट की यह टिपपणी स्वास्थ्य क्षेत्र की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है। यही नहीं, आम जनता को सस्ती और सुलभ दवाओं का भी मार्ग प्रशस्त हो सकता है।
भारत में दवा उद्योग एक विशाल और जटिल क्षेत्र है, जहां दवा कंपनियां अक्सर अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए अनैतिक तरीकों का सहारा लेती है। ये कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त उपहार यात्राएं महंगे रात्रिभोज और अन्य प्रलोभन देकर अपनी ब्रांडेड दवाओं को प्रचारित करने के लिए प्रेरित करती है। नतीजतन, डॉक्टर कई बार मरीजों को ऐसी दवाएं लिखते है, जो न केवल महंगी होती हैं, बल्कि कई बार अनावश्यक भी होती है। इसका सीधा असर मरीजों की जेब स्वास्थ्य पर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे को संज्ञान में लेते हुए एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाओं को नियंत्रित करने के लिए यूनफार्म कोड ऑफ फामौस्युटिकल मार्केटिंग को कनूनी रूप देने की मांग की गई थी। जेनेरिक दवाएं जो ब्रांडेड दवाओं का सस्ता विकल्प होती है, वही सक्रिय तत्व रखती है और उतनी ही प्रभावी होती है। फिर भी, इनका उपयोग भारत में अपेक्षाकृत कम है, क्योंकि डॉक्टरों पर कोई बाध्यकारी कानून नहीं है। हालांकि, भारतीय मेडिकल काउंसिल ने डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है, लेकिन ये बाध्यकारी नहीं, एक स्वैच्छिक संहिता है, जिसकाा पालन दवा कंपनियां अपनी मर्जी करती है। केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है, लेकिन इसकी अनुशंसाएं अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाएं केवल आर्थिक शोषण तक सीमित नहीं है, ये मरीजों के स्वास्थ्य और जान को भी खतरे में डालती है। महंगी दवाओं के प्रचार के कारण कई बार गरीब मरीज इलाज से वंचित रह जाते है। यदि जेनेरिक दवाओं को अनवार्य किया जाए, तो न केवल दवाओं की कीमतें कम होगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं भी अधिक समावेशी और सुलभ बनेंगी।
भारत में दवा उद्योग एक विशाल और जटिल क्षेत्र है, जहां दवा कंपनियां अक्सर अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए अनैतिक तरीकों का सहारा लेती है। ये कंपनियां डॉक्टरों को मुफ्त उपहार यात्राएं महंगे रात्रिभोज और अन्य प्रलोभन देकर अपनी ब्रांडेड दवाओं को प्रचारित करने के लिए प्रेरित करती है। नतीजतन, डॉक्टर कई बार मरीजों को ऐसी दवाएं लिखते है, जो न केवल महंगी होती हैं, बल्कि कई बार अनावश्यक भी होती है। इसका सीधा असर मरीजों की जेब स्वास्थ्य पर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे को संज्ञान में लेते हुए एक याचिका की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जिसमें दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाओं को नियंत्रित करने के लिए यूनफार्म कोड ऑफ फामौस्युटिकल मार्केटिंग को कनूनी रूप देने की मांग की गई थी। जेनेरिक दवाएं जो ब्रांडेड दवाओं का सस्ता विकल्प होती है, वही सक्रिय तत्व रखती है और उतनी ही प्रभावी होती है। फिर भी, इनका उपयोग भारत में अपेक्षाकृत कम है, क्योंकि डॉक्टरों पर कोई बाध्यकारी कानून नहीं है। हालांकि, भारतीय मेडिकल काउंसिल ने डॉक्टरों को जेनेरिक दवाएं लिखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए है, लेकिन ये बाध्यकारी नहीं, एक स्वैच्छिक संहिता है, जिसकाा पालन दवा कंपनियां अपनी मर्जी करती है। केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है, लेकिन इसकी अनुशंसाएं अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
दवा कंपनियों की अनैतिक प्रथाएं केवल आर्थिक शोषण तक सीमित नहीं है, ये मरीजों के स्वास्थ्य और जान को भी खतरे में डालती है। महंगी दवाओं के प्रचार के कारण कई बार गरीब मरीज इलाज से वंचित रह जाते है। यदि जेनेरिक दवाओं को अनवार्य किया जाए, तो न केवल दवाओं की कीमतें कम होगी, बल्कि स्वास्थ्य सेवाएं भी अधिक समावेशी और सुलभ बनेंगी।
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