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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created May 30th, 09:05 by lucky shrivatri
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मानव जीवन का परम लक्ष्य आत्म-साक्षात्कार, दुखों की निवृत्ति और परमात्मा की प्राप्ति है। यह कोई नवीन विचार नहीं, अपितु अनादि काल से ही यह आध्यात्मि जिज्ञासा मानव की चेतना का मूल आधार रही है। जीवन की इस दिशा में सार्थक यात्रा तभी संभव है, जब हम सत्कर्मो का आश्रय लें। नि:स्वार्थ सेवा, दान, सतयाचरण और यज्ञ जैसे शुभ कर्म न केवल हमारी आत्मा को पवित्र बनाते हैं, बल्कि समष्टि की भी उन्नति करते है। जब किसी व्यक्ति के अंत:करण में सत्कर्मो की भावना जाग्रत होती है, तो वह क्षण धन्य होता है। ये शुभ कर्म ही मानव जीवन को अर्थपूर्ण बनाते हैं और आत्म-उद्धार का मार्ग प्रशस्त करते है। हमारे द्वारा किए गए शुभ अथवा अशुभ कर्म ही हमारे जीवन में सुख दु:ख की फसल उगाते है। इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी हमें न तो दुखी होना चाहिए और न ही विचलित। सुख और दुख क्षणिक होते हैं, परन्तु सत्संग और सत्कर्म जीवन की दिशा और दशा दोनों को परिवर्तित कर सकते है। सत्संग से प्रेरित होकर जब हम शुभ कर्मो की और उन्मुख होते है, तब हमारा जीवन परम आनन्द और सौन्दर्य से भर उठता है। जब कोई व्यक्ति शुभ कर्मो के पथ पर अग्रसर होता है, तो उसका प्रभाव केवल व्यक्तिगत नहीं रहता, वह समाज के लिए भी प्रेरणादायक बनता है। ऐसे कर्मो से सामाजिक सद्भाव, करूणा और नेतिकता को बल मिलता है। एक व्यक्ति का जागरण, सम्पूर्ण समाज के रूपांतरण का कारण बन सकता है। जीवन को दिव्यता की ओर ले जाने का मार्ग कोई दूरस्थ या कठिन लक्ष्य नहीं है। यह मार्ग हमारे शुभ संकल्पों, सत्कर्मो सेवा और सत्याचरण में ही निहित है। आवश्यकता है तो बस इस दिशा में पहला कदम बढ़ाने की।
