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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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जिन लोगों ने अपने पूरे जीवन को परिवार, समाज और राष्ट्र की सेवा में अर्पित किया, वही आज अपनी उम्र के अंतिम पड़ाव पर अपमान, उपेक्षा और अकेलेपन का सामना कर रहे हैं। यह केवल सामाजिक विफलता नहीं, मानवीय मूल्यहीनता का प्रतीक है। भारतीय समाज, जो कभी मातृ-पितृ देवो भव: के सिद्धांत पर गर्व करता था, आज वहां बुजुर्ग केवल स्मृतियों में सम्मानित और व्यवहार में उपेक्षित रह गए है। आधुनिक जीवनशैली, पारिवारिक ढांचों में बदलाव और नैतिक मूल्यों के क्षरण ने वृद्धजनों की स्थिति को और अधिक दयनीय बना दिया है। बुजुर्ग दुर्व्यवहार कई प्रकार से सामने आता है। शारीरिक हिंसा तो सबसे प्रत्यक्ष रूप है, परंतु इसके अलावा मानसिक भावनात्मक, मौखिक, आर्थिक सामाजिक उपेक्षा और अनदेखी जैसे कई अप्रत्यक्ष दुर्व्यवहार भी है, जो उतने ही पीड़ादयक होते हे। मौखिक दुर्व्यवहार के अंतर्गत अपशब्द कहना, डा़टना, अपमान करना या बार-बार उनकी निर्भरता का ताना देना आता है। एक अन्य गंभीर स्थिति आर्थिक शोषण की है। उन्हें जरूरी चिकित्सकीय सुविधा से वंचित रखना ही दुर्व्यवहार की श्रेणी में आता है। हेल्पेज इंडिया के सर्वे में सामने आया कि 60 प्रतिशत से अधिक बुजुर्गो ने अपने जीवन में किसी न किसी प्रकार के दुर्व्यवहार का सामना किया है। सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों के हित में कई कानून बनाए है, जिनमें प्रमुख वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम 2007 इसके बुजुर्ग माता-पिता संतान से भरण पोषण की मांग और कानूनी सहायता प्राप्त कर सकते है। कई राज्य सरकारों ने वृद्धाश्रम, मुफ्त चिकित्सा सेवाएं व हेल्पलाइन जैसे उपाय किए है।
हमें समझना होगा कि बुजुर्गो का सम्मान नैतिक उत्तरदायित्व है। आज जो पीढ़ी युवावस्था में है, वह कल वृद्धावस्था में पहुंचेगी। यदि हम आज बुजुर्गो के लिए संवेदनशील नहीं है तो आने वाली पीढि़यां हमारे लिए भी वैसी ही होंगी। जरूरत है कि हम केवल बुजुर्गो के अधिकारों के लिए आवाज न उठाएं बल्कि उन्हें वह गरिमा दे, जिसके वे हकदार है।
हमें समझना होगा कि बुजुर्गो का सम्मान नैतिक उत्तरदायित्व है। आज जो पीढ़ी युवावस्था में है, वह कल वृद्धावस्था में पहुंचेगी। यदि हम आज बुजुर्गो के लिए संवेदनशील नहीं है तो आने वाली पीढि़यां हमारे लिए भी वैसी ही होंगी। जरूरत है कि हम केवल बुजुर्गो के अधिकारों के लिए आवाज न उठाएं बल्कि उन्हें वह गरिमा दे, जिसके वे हकदार है।
