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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Wednesday June 25, 08:11 by lucky shrivatri


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लम्‍बे समय से भारत में शिक्षा व्‍यवस्‍था असमानता और व्‍यावसायिकता की शिकार बनती दिख रही है। इस माहौल के बीच केंद्रीय शिक्षा मंत्रलाय द्वारा हाल में कोचिंग पर छात्रों की निर्भरता कम करने के लिए कमेटी का गठन सराहनीय कदम ही कहा जाएगा। लेकिन सवाल यह भी है कि कमेटी का गठन महज औपचारिकता बनकर ही रह जाएगा या फिर कोई ठोस सुझावों के साथ बदलाव के सुझाव सामने आएंगे। यह सवाल इसलिए भी क्‍योंकि हमारे देश में कोचिंग का कारोबार लगातार फल-फूल रहा है। इतना ही नहीं, प्रतियोगी परीक्षाओं में सेंध लगाते हुए कई कोचिंग संस्‍थान तो सरकारी नौकरियों की भर्ती परीक्षा तक को प्रभावित करने लगे है। कोचिंग संस्‍थानों के जरिए पढ़ाई से केवल विद्यार्थियों को दी जा रही शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक असमानता को पनपाने का बड़ा कारण भी बनता है।
   यूरोपीय देशों में, विशेष रूप से फिनलैंड, स्‍वीडन और जर्मनी जैसे देशों में, शिक्षा व्‍यवस्‍था समावेशी और समानता वाली है। इन देशों में स्‍कूल ही प्राथमिक शिक्षा का केंद्र होते हैं, जहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षण, आधुनिक पाठयक्रम और व्‍यत्किगत विकास पर ध्‍यान दिया जाता है। कोचिंग का कोई अलग सिस्‍टम नहीं है, क्‍योंकि स्‍कूलों में ही प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे जेईई, नीट और यूपीएससी की तैयारी के लिए कोचिंग सेंटर के माध्‍यम से पढ़ाई की अनिवार्यता महसूस होने लगी है। कोचिंग व्‍यवस्‍था अमीरों के लिए यह बड़ा बोझ बन चुकी है। कोचिंग की ऊंची फीस और बड़े शहरों में रहने की लागत के कारण गरीब परिवारों के बच्‍चे इस दौड़ से बाहर हो जाते है। यह स्थिति भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिए चिंताजनक है, जहां संविधान सभी को समान अवसर की गारंटी देता है। लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍था में शिक्षा सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए, लेकिन भारत में बार-बार कमेटियां गठित होने के बावजूद कोई ठोस परिणाम नहीं निकलता। एनसीईआरटी और यूजीसी जैसे संस्‍थान भी दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठा पाए हैं।  
        सरकार को चाहिए कि स्‍कूली शिक्षा को सशत्क किया जाए। शिक्षक प्रशिक्षण पर निवेश होना चाहिए और प्रतियोगी परीक्षाओं के पाठृयक्रम को स्‍कूली कोर्स से जोड़ा जाए। शिक्षा का उद्देश्‍य केवल प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता नहीं, बल्कि व्‍यत्कित्‍व विकास समाज के लिए योगदान होना चाहिए।

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