eng
competition

Text Practice Mode

BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

created Jul 19th, 11:05 by typing test


0


Rating

553 words
149 completed
00:00
राजा भोज के दरबार में कालिदास नामक एक महान और विद्वान कवि थे। उन्‍हें अपनी कला और ज्ञान का बहुत घमंड हो गया था प्राचीन काल में यात्रा करने के लिए रेल अथवा बस जैसे कोई साधन नहीं होते थे। अधिकतर लोग एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए पैदल ही यात्रा करते थे एक बार कवि कालिदास भी यात्रा पर निकले मार्ग में उन्‍हें बहुत प्‍यास लगी वह अपनी प्‍यास बुझाने के लिए मार्ग में किसी घर अथवा झोपडी को ढूंढ रहे थे जहां से पानी मांगकर वह अपनी प्‍यास बुझा सकें। चलते चलते उन्‍हें एक घर दिखाई दिया उस घर के सामने पहुंचकर कालिदासजी बोले माते कोई है मैं बहुत प्‍यासा हूं थोडा पानी पिला दीजिए आपका भला होगा उस घर से एक माताजी बाहर आई और बोली मैं तो तुम्‍हें जानती भी नहीं तुम पहले अपना परिचय दो उसके बाद मैं तुमको पानी अवश्‍य पिला दूंगी कालिदासजी बोले माते मैं एक पथिक हूं कृपया अब पानी पिला दें। वह माताजी बोली तुम पथिक कैसे हो सकते हो इस संसार में तो केवल दो ही पथिक हैं एक है सूर्य और दूसरे चंद्रमा वे कभी नहीं रूकते निरंतर चलते ही रहते हैं तुम झूठ बोला मुझे सत्‍य बताओ। कालिदास बोलें मैं एक अतिथि हूं अब तो कृपया पानी पिला दें माताजी बोली तुम अतिथी कैसे हो सकते हो इस संसार में केवल दो ही अतिथि हैं पहला है धन और दूसरा है यौवन इन्‍हें जाने में समय नहीं लगता अब सत्‍य बताओ तुम कौन हो। कालिदासजी प्‍यास के कारण और तर्क से पराजित होकर हताश हो चुके थे जैसे तैसे करके वह बोले मैं सहनशील हूं अब तो आप पानी पिला दें। माताजी बोली तुम पुन: झूठ बोल रहे हो सहनशील तो केवल दो ही हैं एक है धरती जो कि पापी और पुण्‍यवान सबका भार सहन करती है। धरती की छाती चीरकर बीज बो देनेपर भी वह अनाज के भंडार देती है। दूसरे सहनशील हैं पेड जिनको पत्‍थर मारो तो भी मीठे फल देते हैं तुम सहनशील नहीं हो सच बताओ तुम कौन हो कालिदासजी अब मूर्च्‍छा की स्थिति में गए और बोले मैं एक हठी हूं। माताजी बोली क्‍यों असत्‍य पर असत्‍य बोलते जा रहे हो संसार में हठी तो केलव दो ही है पहला है नख और दूसरे हैं केश अर्थात बाल उन्‍हें कितना भी काटो वे पुन: निकल आते हैं अब सच बताओ तुम कौन हो अब कालिदास जी पूर्णत: पराजित और अपमानित हो चुके थे वे बोले मैं मूर्ख हूं। माताजी बोली तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो मूर्ख तो दो ही हैं पहला है वह राजा जो बिना योग्‍यता के भी सभी पर शासन करता है और दूसरा है उसके दरबार का पंडित जो राजा को खुश करने के लिए उसकी गलत बातों को भी सही सिद्ध करने की चेष्‍टा में ही लगा रहता है और सदैव उसका झूठा गुणगान करता रहता है। अब कालिदास जी लगभग मूर्च्छित होकर उन माताजी के चरणों में गिर पडे और पानी की याचना करने लगे गिडगिडाने लगे माताजी ने कहा उठो वत्‍स उनकी आवाज सुनकर कालिदासजी ने ऊपर देखा तो वहां साक्षात सरस्‍वती माता खडी थी। कालिदासजी ने उनके चरणों में पुन: नमस्‍कार किया सरस्‍वती माता ने कहा शिक्षा से ज्ञान आता है अहंकार नहीं तुम्‍हें अपने ज्ञान और शिक्षा के बलपर मान और प्रतिष्‍ठा तो मिली परंतु तुमको उसका अहंकार हो गया हैं।  

saving score / loading statistics ...