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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

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विश्‍व बैंक की एक रिपोर्ट में जब बताया गया कि उपभोग खर्च के पैमाने पर भारत में गरीबी अमीरी का अंतर दुनिया में सबसे कम है तो अर्थशास्‍त्र की दुनिया में भूचाल गया। दरअसल रिपोर्ट में तो संस्‍था ने स्‍पष्‍ट रूप से लिखा था कि वह आंकड़ों की विश्‍वसनीयता की तस्‍दीक नहीं करते लेकिन सरकार ने यह तथ्‍य नहीं बताया। दूसरा, रिपोर्ट में उपभोग खर्च की तुलना आय का आंकड़ा देने वाले देशों से की गई, जबकि भारत में आज तक कभी भी आय आधारित सर्वे हुआ ही नहीं। फिर किसी भी समाज के लोगों में उपभोग के स्‍तर में ज्‍यादा अंतर नहीं होता, क्‍योंकि धनवान अपनी आय का बड़ा भाग बचत में लगाता है जबकि गरीब गुजर-बसर में ज्‍यादा खर्च करता है। लिहाजा गिनी इंडेक्‍स पर गरीबी अमीरी के बीच की खाई मापने का तरीका एक ही है वास्‍तविक आय। प्रभावशाली व्‍यक्ति जिस चार्टर्ड विमान से घूमता है या जिस महंगे होटल में रूकता है, उसका खर्च कॉपोरेट खाते से होता है, वह व्‍यक्तिगत उपभोग नहीं होता। समय गया है कि सरकारें आंकड़े सही प्रस्‍तुत करें ताकि नीति बनाने में कोई गलती हो। विश्‍व बैंक की रिपोर्ट को सही परिप्रेक्ष्‍य और सही संदर्भों के साथ देना सरकार की विश्‍वसनीयता बढ़ाता है। अगर उपभोग के पैमाने पर दुनिया में गरीबी अमीरी का अंतर सबसे कम भारत में होता तो इसी देश में कुपोषण की बड़ी समस्‍या होती।

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