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हॉरर स्टोरी
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हॉरर स्टोरी
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1. गांव का पुराना मकान
राजीव एक फोटोजर्नलिस्ट था। शहर की भीड़भाड़ और थकान से ऊब चुका था। उसे एक नई कहानी की तलाश थी — कुछ अलग, कुछ ऐसा जो उसकी आत्मा को झकझोर दे। एक दिन उसके दोस्त ने उसे एक गांव के बारे में बताया – *बसेरा*, जो अब लगभग वीरान हो चुका था। कहते थे कि वहां का एक पुराना हवेलीनुमा मकान आज भी रहस्यों से भरा हुआ है। किसी समय वह गांव के सबसे अमीर जमींदार *धरमदास ठाकुर* का था, पर आज वह खंडहर बन चुका है।
राजीव को कहानी मिल गई थी।
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2. पहुंचना
राजीव अगली ही सुबह अपने कैमरा और बैग के साथ बसेरा गांव के लिए निकल पड़ा। गांव में पहुंचते ही उसे अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ। दोपहर होने के बावजूद सड़कों पर कोई नहीं था। जैसे-जैसे वह हवेली की ओर बढ़ा, लोग खिड़कियों से उसे झांकते, पर कोई कुछ बोलता नहीं।
उसने एक वृद्ध से पूछ लिया, "यह हवेली यहां कितने समय से है?"
वृद्ध कांपती आवाज़ में बोला, "मत जा बेटा... वो हवेली इंसानों की नहीं रही अब। ठाकुर की आत्मा अब भी वहां भटकती है।"
राजीव मुस्कुराया, "मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता बाबा। बस कुछ तस्वीरें खींचनी हैं।"
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3. पहली रात
हवेली बाहर से जितनी डरावनी लग रही थी, अंदर से और भी भयानक थी। दीवारों पर जाले, फर्श पर धूल की मोटी परत, टूटे फर्नीचर और खामोशी – जैसे कोई सदियों से वहां न रहा हो। पर कुछ था… कुछ जो उसे देख रहा था।
रात होते ही चीजें बदलने लगीं। दरवाजे अपने आप बंद हो रहे थे, खिड़कियां चरचराने लगीं। राजीव ने कैमरा उठाया और सब रिकॉर्ड करने लगा।
अचानक एक कमरा दिखा – बंद था पर कुंडी खुद ही खुल गई।
कमरे के अंदर एक पुराना झूला था, जो खुद-ब-खुद हिल रहा था। झूले के पास एक पुराना दर्पण था – धुंधला और टूटा हुआ।
राजीव जैसे ही दर्पण के सामने गया, उसे अपने पीछे एक परछाई दिखी। पर जब उसने पीछे देखा – कोई नहीं था।
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4. ठाकुर की कहानी
अगले दिन राजीव गांव में एक पंडित से मिला, जो अब भी मंदिर में पूजा करता था।
पंडित ने बताया, “धरमदास ठाकुर एक क्रूर इंसान था। गांववालों पर अत्याचार करता था। उसकी पत्नी *लक्ष्मी* बहुत नेकदिल थी, पर ठाकुर को ये पसंद नहीं था। एक रात उसने अपनी ही पत्नी को हवेली में बंद करके आग लगा दी। कहते हैं, लक्ष्मी की आत्मा मुक्त हो गई, पर ठाकुर की आत्मा अब भी हवेली में फंसी है… वो लौटना चाहता है… किसी नए शरीर में।”
राजीव की हंसी छूट गई, “तो अब भूत शरीर चुराते हैं?”
पंडित ने गंभीरता से कहा, “हां… और अगला शिकार वही होता है जो उसे देखकर भी यकीन न करे।”
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5. वापसी नहीं
तीसरी रात सबसे डरावनी थी।
राजीव ने कमरे में कैमरे लगाए थे ताकि कुछ कैद कर सके। आधी रात को अचानक सब कैमरे बंद हो गए। बिजली चली गई और पूरा हवेली स्याह अंधेरे में डूब गई।
राजीव टॉर्च लेकर चल रहा था कि उसे सीढ़ियों पर भारी कदमों की आहट सुनाई दी – *ठक… ठक… ठक…
उसके सामने एक आकृति उभरी – लम्बा, सफेद धोती में लिपटा, आंखें लाल और मुंह से खून टपकता हुआ। वो ठाकुर था।
“तू आया है... मेरे लिए...”, उस आवाज़ ने जैसे राजीव के शरीर को जकड़ लिया।
राजीव भागने की कोशिश करता है, पर उसके पैर भारी हो जाते हैं। वह चिल्लाता है, “कोई है? मदद करो!”
पर हवेली के बाहर कोई आवाज़ नहीं जाती। ठाकुर की आत्मा उसे उस ही कमरे में ले जाती है जहां वो झूला था। और फिर...
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6. पांच साल बाद
गांव में अब कोई उस हवेली के पास भी नहीं जाता।
पर एक दिन, एक फोटोजर्नलिस्ट – *रोहित*, राजीव के पुराने काम से प्रेरित होकर बसेरा पहुंचता है।
गांववाले उसे पहचानते नहीं, पर एक वृद्ध पंडित चौंक जाता है – “राजीव?”
रोहित मुस्कुराता है, “नहीं बाबा, मैं रोहित हूं।”
पंडित कांपते हुए पीछे हटता है – “नहीं... तू वही है... तेरी आंखें... ये राजीव की नहीं हैं... ये तो ठाकुर की हैं...!”
रोहित चुपचाप मुस्कुराता है, और आंखों में वही लाल चमक उभर आती है।
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अंत… या एक नई शुरुआत?
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1. गांव का पुराना मकान
राजीव एक फोटोजर्नलिस्ट था। शहर की भीड़भाड़ और थकान से ऊब चुका था। उसे एक नई कहानी की तलाश थी — कुछ अलग, कुछ ऐसा जो उसकी आत्मा को झकझोर दे। एक दिन उसके दोस्त ने उसे एक गांव के बारे में बताया – *बसेरा*, जो अब लगभग वीरान हो चुका था। कहते थे कि वहां का एक पुराना हवेलीनुमा मकान आज भी रहस्यों से भरा हुआ है। किसी समय वह गांव के सबसे अमीर जमींदार *धरमदास ठाकुर* का था, पर आज वह खंडहर बन चुका है।
राजीव को कहानी मिल गई थी।
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2. पहुंचना
राजीव अगली ही सुबह अपने कैमरा और बैग के साथ बसेरा गांव के लिए निकल पड़ा। गांव में पहुंचते ही उसे अजीब सा सन्नाटा महसूस हुआ। दोपहर होने के बावजूद सड़कों पर कोई नहीं था। जैसे-जैसे वह हवेली की ओर बढ़ा, लोग खिड़कियों से उसे झांकते, पर कोई कुछ बोलता नहीं।
उसने एक वृद्ध से पूछ लिया, "यह हवेली यहां कितने समय से है?"
वृद्ध कांपती आवाज़ में बोला, "मत जा बेटा... वो हवेली इंसानों की नहीं रही अब। ठाकुर की आत्मा अब भी वहां भटकती है।"
राजीव मुस्कुराया, "मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता बाबा। बस कुछ तस्वीरें खींचनी हैं।"
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3. पहली रात
हवेली बाहर से जितनी डरावनी लग रही थी, अंदर से और भी भयानक थी। दीवारों पर जाले, फर्श पर धूल की मोटी परत, टूटे फर्नीचर और खामोशी – जैसे कोई सदियों से वहां न रहा हो। पर कुछ था… कुछ जो उसे देख रहा था।
रात होते ही चीजें बदलने लगीं। दरवाजे अपने आप बंद हो रहे थे, खिड़कियां चरचराने लगीं। राजीव ने कैमरा उठाया और सब रिकॉर्ड करने लगा।
अचानक एक कमरा दिखा – बंद था पर कुंडी खुद ही खुल गई।
कमरे के अंदर एक पुराना झूला था, जो खुद-ब-खुद हिल रहा था। झूले के पास एक पुराना दर्पण था – धुंधला और टूटा हुआ।
राजीव जैसे ही दर्पण के सामने गया, उसे अपने पीछे एक परछाई दिखी। पर जब उसने पीछे देखा – कोई नहीं था।
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4. ठाकुर की कहानी
अगले दिन राजीव गांव में एक पंडित से मिला, जो अब भी मंदिर में पूजा करता था।
पंडित ने बताया, “धरमदास ठाकुर एक क्रूर इंसान था। गांववालों पर अत्याचार करता था। उसकी पत्नी *लक्ष्मी* बहुत नेकदिल थी, पर ठाकुर को ये पसंद नहीं था। एक रात उसने अपनी ही पत्नी को हवेली में बंद करके आग लगा दी। कहते हैं, लक्ष्मी की आत्मा मुक्त हो गई, पर ठाकुर की आत्मा अब भी हवेली में फंसी है… वो लौटना चाहता है… किसी नए शरीर में।”
राजीव की हंसी छूट गई, “तो अब भूत शरीर चुराते हैं?”
पंडित ने गंभीरता से कहा, “हां… और अगला शिकार वही होता है जो उसे देखकर भी यकीन न करे।”
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5. वापसी नहीं
तीसरी रात सबसे डरावनी थी।
राजीव ने कमरे में कैमरे लगाए थे ताकि कुछ कैद कर सके। आधी रात को अचानक सब कैमरे बंद हो गए। बिजली चली गई और पूरा हवेली स्याह अंधेरे में डूब गई।
राजीव टॉर्च लेकर चल रहा था कि उसे सीढ़ियों पर भारी कदमों की आहट सुनाई दी – *ठक… ठक… ठक…
उसके सामने एक आकृति उभरी – लम्बा, सफेद धोती में लिपटा, आंखें लाल और मुंह से खून टपकता हुआ। वो ठाकुर था।
“तू आया है... मेरे लिए...”, उस आवाज़ ने जैसे राजीव के शरीर को जकड़ लिया।
राजीव भागने की कोशिश करता है, पर उसके पैर भारी हो जाते हैं। वह चिल्लाता है, “कोई है? मदद करो!”
पर हवेली के बाहर कोई आवाज़ नहीं जाती। ठाकुर की आत्मा उसे उस ही कमरे में ले जाती है जहां वो झूला था। और फिर...
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6. पांच साल बाद
गांव में अब कोई उस हवेली के पास भी नहीं जाता।
पर एक दिन, एक फोटोजर्नलिस्ट – *रोहित*, राजीव के पुराने काम से प्रेरित होकर बसेरा पहुंचता है।
गांववाले उसे पहचानते नहीं, पर एक वृद्ध पंडित चौंक जाता है – “राजीव?”
रोहित मुस्कुराता है, “नहीं बाबा, मैं रोहित हूं।”
पंडित कांपते हुए पीछे हटता है – “नहीं... तू वही है... तेरी आंखें... ये राजीव की नहीं हैं... ये तो ठाकुर की हैं...!”
रोहित चुपचाप मुस्कुराता है, और आंखों में वही लाल चमक उभर आती है।
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अंत… या एक नई शुरुआत?
