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चतुर बंदर और लालची मगरमच्छ | पंचतंत्र की कहानी
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परिचय
एक समय की बात है, एक विशाल जंगल में एक चौड़ी नदी बहती थी। नदी के किनारे एक ऊंचा जामुन का पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर काले-बैंगनी रसीले जामुन लटकते थे। इस पेड़ पर एक समझदार बंदर रहता था, जिसका नाम था चिंटू। चिंटू न सिर्फ चतुर था, बल्कि उसकी आंखों में एक खास चमक थी, जो उसकी बुद्धिमानी को दर्शाती थी। वह हर दिन जामुन खाता, नदी के किनारे बैठकर मछलियों को देखता और अपने दिन का आनंद लेता था। लेकिन उस नदी में एक मगरमच्छ रहता था, जिसका नाम था भोलू। भोलू दिखने में भोला-भाला था, लेकिन उसका मन लालच और चालबाजी से भरा था।
चिंटू और भोलू की दोस्ती का आरंभ
एक दिन भोलू ने चिंटू को पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बैठे हुए देखा। चिंटू एक जामुन तोड़कर बड़े मजे से खा रहा था। भोलू की आंखों में लालच की चमक आ गई। उसने सोचा, “अगर मैं इस बंदर से दोस्ती कर लूं, तो मुझे रोज जामुन मिलेंगे।” उसने चिंटू को आवाज लगाई, “ए बंदर भाई, तुम्हारा नाम क्या है? मैं तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं।” चिंटू ने नीचे देखा और हंसते हुए कहा, “मेरा नाम चिंटू है। और तुम कौन हो, नदी के राजा?” भोलू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मैं भोलू हूं, इस नदी का मगरमच्छ। चलो, दोस्ती करते हैं। तुम मुझे जामुन दो, और मैं तुम्हें नदी के उस पार की सैर कराऊंगा।”
चिंटू को भोलू की बातों में कुछ शक हुआ। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी जैसा लग रहा है, जहां चालाकी और धोखा छिपा होता है।” फिर भी, उसने भोलू को परखने के लिए एक जामुन नीचे फेंक दिया। भोलू ने उसे खाया और जोर से तारीफ की, “वाह! ऐसा स्वादिष्ट जामुन मैंने कभी नहीं खाया। तुम सच में मेरे दोस्त बनने लायक हो।” इस तरह उनकी दोस्ती शुरू हुई। हर दिन चिंटू भोलू को जामुन देता, और भोलू उसे अपनी पीठ पर बिठाकर नदी के उस पार ले जाता। वहां चिंटू को नए-नए फल, रंग-बिरंगे पक्षी, और जंगल की खूबसूरती देखने को मिलती। लेकिन चिंटू हमेशा सतर्क रहता था, क्योंकि उसे पता था कि पंचतंत्र की कहानी में दोस्ती के पीछे अक्सर कोई न कोई चाल होती है।
गंगा की चाल
कई दिन बीत गए। एक दिन भोलू की पत्नी, जिसका नाम गंगाथा, ने उससे पूछा, “ये जामुन तुम हर दिन कहां से लाते हो?” भोलू ने सारी बात बताई कि कैसे वह चिंटू से जामुन लेता है। गंगा की आंखों में लालच की आग भड़क उठी। उसने कहा, “अगर यह बंदर इतने मीठे जामुन खाता है, तो इसका दिल कितना स्वादिष्ट होगा! इसे मेरे लिए पकड़ लाओ।” भोलू पहले तो हिचकिचाया। उसने कहा, “गंगा, यह पंचतंत्र की कहानी का हिस्सा हो सकता है। चिंटू मेरा दोस्त है, उसे मारना ठीक नहीं।” लेकिन गंगा ने उसे बार-बार उकसाया, “अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो उसका दिल लाओ।” आखिरकार, भोलू गंगा की बातों में आ गया।
चिंटू की चतुराई
अगले दिन भोलू चिंटू के पास गया और बोला, “दोस्त, आज मेरी पत्नी गंगा तुमसे मिलना चाहती है। वह तुम्हारे लिए खास मछली पकाएगी। मेरी पीठ पर बैठो, मैं तुम्हें अपने घर ले चलता हूं।” चिंटू को भोलू की आवाज में कुछ अजीब-सा लगा। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी का ट्विस्ट हो सकता है।” फिर भी, उसने भोलू की चाल को समझने के लिए हां कह दी। वह भोलू की पीठ पर बैठ गया। जैसे ही वे नदी के बीच में पहुंचे, भोलू ने हंसते हुए कहा, “चिंटू, सच तो यह है कि मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है। अब तुम बच नहीं सकते।”
यह सुनकर चिंटू के होश उड़ गए। नदी का पानी ठंडा था, और भोलू के दांत उसकी पीठ के पास चमक रहे थे। लेकिन चिंटू ने हिम्मत नहीं हारी। उसने दिमाग लगाया और हंसते हुए कहा, “अरे भोलू, तुमने पहले क्यों नहीं बताया? मेरा दिल तो पेड़ पर ही छूट गया है। मैं उसे जामुन के साथ रखता हूं ताकि वह मीठा बना रहे। चलो, वापस चलते हैं, मैं उसे ले आता हूं।” भोलू को चिंटू की बात सच लगी। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी में सचमुच एक नया मोड़ है।” वह तुरंत किनारे की ओर मुड़ा। जैसे ही वे किनारे पर पहुंचे, चिंटू तेजी से पेड़ पर चढ़ गया और ऊपर से चिल्लाया, “भोलू, तुम्हें क्या लगा? मैं अपना दिल पेड़ पर छोड़ दूंगा? तुम्हारी चाल समझ में आ गई थी। अब कभी मेरे पास मत आना।”
चिंटू की चतुराई ने उसे संकट से बाहर निकाला। भोलू को अपनी मूर्खता पर गुस्सा आया और वह जोर-जोर से दहाड़ा, लेकिन चिंटू पेड़ की ऊंची डाल पर सुरक्षित था। चिंटू ने ऊपर से कुछ जामुन फेंके और कहा, “ये लो, आखिरी बार जामुन खा लो। यह पंचतंत्र की कहानी का सबक है कि लालच हमेशा हारता है।” भोलू चुपचाप जामुन खाकर नदी में वापस चला गया।
कई दिन बीत गए। भोलू को अपनी हार बर्दाश्त नहीं हुई। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी अभी खत्म नहीं हुई। मैं चिंटू को फिर से फंसाऊंगा।” एक दिन वह फिर से चिंटू के पास गया। इस बार उसने उदास चेहरा बनाया और कहा, “चिंटू, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं सच में तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं। गंगा भी तुमसे माफी मांगना चाहती है। मेरे साथ चलो, इस बार कोई चाल नहीं।” चिंटू ने भोलू की बात सुनी, लेकिन उसका भरोसा अब पूरी तरह टूट चुका था। उसने कहा, “भोलू, पंचतंत्र की कहानी हमें सिखाती है कि धोखे की दोस्ती कभी सच नहीं होती। तुमने एक बार मुझे धोखा देने की कोशिश की, अब दूसरी बार मौका नहीं दूंगा।”
एक समय की बात है, एक विशाल जंगल में एक चौड़ी नदी बहती थी। नदी के किनारे एक ऊंचा जामुन का पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर काले-बैंगनी रसीले जामुन लटकते थे। इस पेड़ पर एक समझदार बंदर रहता था, जिसका नाम था चिंटू। चिंटू न सिर्फ चतुर था, बल्कि उसकी आंखों में एक खास चमक थी, जो उसकी बुद्धिमानी को दर्शाती थी। वह हर दिन जामुन खाता, नदी के किनारे बैठकर मछलियों को देखता और अपने दिन का आनंद लेता था। लेकिन उस नदी में एक मगरमच्छ रहता था, जिसका नाम था भोलू। भोलू दिखने में भोला-भाला था, लेकिन उसका मन लालच और चालबाजी से भरा था।
चिंटू और भोलू की दोस्ती का आरंभ
एक दिन भोलू ने चिंटू को पेड़ की सबसे ऊंची डाल पर बैठे हुए देखा। चिंटू एक जामुन तोड़कर बड़े मजे से खा रहा था। भोलू की आंखों में लालच की चमक आ गई। उसने सोचा, “अगर मैं इस बंदर से दोस्ती कर लूं, तो मुझे रोज जामुन मिलेंगे।” उसने चिंटू को आवाज लगाई, “ए बंदर भाई, तुम्हारा नाम क्या है? मैं तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं।” चिंटू ने नीचे देखा और हंसते हुए कहा, “मेरा नाम चिंटू है। और तुम कौन हो, नदी के राजा?” भोलू ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “मैं भोलू हूं, इस नदी का मगरमच्छ। चलो, दोस्ती करते हैं। तुम मुझे जामुन दो, और मैं तुम्हें नदी के उस पार की सैर कराऊंगा।”
चिंटू को भोलू की बातों में कुछ शक हुआ। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी जैसा लग रहा है, जहां चालाकी और धोखा छिपा होता है।” फिर भी, उसने भोलू को परखने के लिए एक जामुन नीचे फेंक दिया। भोलू ने उसे खाया और जोर से तारीफ की, “वाह! ऐसा स्वादिष्ट जामुन मैंने कभी नहीं खाया। तुम सच में मेरे दोस्त बनने लायक हो।” इस तरह उनकी दोस्ती शुरू हुई। हर दिन चिंटू भोलू को जामुन देता, और भोलू उसे अपनी पीठ पर बिठाकर नदी के उस पार ले जाता। वहां चिंटू को नए-नए फल, रंग-बिरंगे पक्षी, और जंगल की खूबसूरती देखने को मिलती। लेकिन चिंटू हमेशा सतर्क रहता था, क्योंकि उसे पता था कि पंचतंत्र की कहानी में दोस्ती के पीछे अक्सर कोई न कोई चाल होती है।
गंगा की चाल
कई दिन बीत गए। एक दिन भोलू की पत्नी, जिसका नाम गंगाथा, ने उससे पूछा, “ये जामुन तुम हर दिन कहां से लाते हो?” भोलू ने सारी बात बताई कि कैसे वह चिंटू से जामुन लेता है। गंगा की आंखों में लालच की आग भड़क उठी। उसने कहा, “अगर यह बंदर इतने मीठे जामुन खाता है, तो इसका दिल कितना स्वादिष्ट होगा! इसे मेरे लिए पकड़ लाओ।” भोलू पहले तो हिचकिचाया। उसने कहा, “गंगा, यह पंचतंत्र की कहानी का हिस्सा हो सकता है। चिंटू मेरा दोस्त है, उसे मारना ठीक नहीं।” लेकिन गंगा ने उसे बार-बार उकसाया, “अगर तुम मुझसे प्यार करते हो, तो उसका दिल लाओ।” आखिरकार, भोलू गंगा की बातों में आ गया।
चिंटू की चतुराई
अगले दिन भोलू चिंटू के पास गया और बोला, “दोस्त, आज मेरी पत्नी गंगा तुमसे मिलना चाहती है। वह तुम्हारे लिए खास मछली पकाएगी। मेरी पीठ पर बैठो, मैं तुम्हें अपने घर ले चलता हूं।” चिंटू को भोलू की आवाज में कुछ अजीब-सा लगा। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी का ट्विस्ट हो सकता है।” फिर भी, उसने भोलू की चाल को समझने के लिए हां कह दी। वह भोलू की पीठ पर बैठ गया। जैसे ही वे नदी के बीच में पहुंचे, भोलू ने हंसते हुए कहा, “चिंटू, सच तो यह है कि मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है। अब तुम बच नहीं सकते।”
यह सुनकर चिंटू के होश उड़ गए। नदी का पानी ठंडा था, और भोलू के दांत उसकी पीठ के पास चमक रहे थे। लेकिन चिंटू ने हिम्मत नहीं हारी। उसने दिमाग लगाया और हंसते हुए कहा, “अरे भोलू, तुमने पहले क्यों नहीं बताया? मेरा दिल तो पेड़ पर ही छूट गया है। मैं उसे जामुन के साथ रखता हूं ताकि वह मीठा बना रहे। चलो, वापस चलते हैं, मैं उसे ले आता हूं।” भोलू को चिंटू की बात सच लगी। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी में सचमुच एक नया मोड़ है।” वह तुरंत किनारे की ओर मुड़ा। जैसे ही वे किनारे पर पहुंचे, चिंटू तेजी से पेड़ पर चढ़ गया और ऊपर से चिल्लाया, “भोलू, तुम्हें क्या लगा? मैं अपना दिल पेड़ पर छोड़ दूंगा? तुम्हारी चाल समझ में आ गई थी। अब कभी मेरे पास मत आना।”
चिंटू की चतुराई ने उसे संकट से बाहर निकाला। भोलू को अपनी मूर्खता पर गुस्सा आया और वह जोर-जोर से दहाड़ा, लेकिन चिंटू पेड़ की ऊंची डाल पर सुरक्षित था। चिंटू ने ऊपर से कुछ जामुन फेंके और कहा, “ये लो, आखिरी बार जामुन खा लो। यह पंचतंत्र की कहानी का सबक है कि लालच हमेशा हारता है।” भोलू चुपचाप जामुन खाकर नदी में वापस चला गया।
कई दिन बीत गए। भोलू को अपनी हार बर्दाश्त नहीं हुई। उसने सोचा, “यह पंचतंत्र की कहानी अभी खत्म नहीं हुई। मैं चिंटू को फिर से फंसाऊंगा।” एक दिन वह फिर से चिंटू के पास गया। इस बार उसने उदास चेहरा बनाया और कहा, “चिंटू, मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है। मैं सच में तुम्हारा दोस्त बनना चाहता हूं। गंगा भी तुमसे माफी मांगना चाहती है। मेरे साथ चलो, इस बार कोई चाल नहीं।” चिंटू ने भोलू की बात सुनी, लेकिन उसका भरोसा अब पूरी तरह टूट चुका था। उसने कहा, “भोलू, पंचतंत्र की कहानी हमें सिखाती है कि धोखे की दोस्ती कभी सच नहीं होती। तुमने एक बार मुझे धोखा देने की कोशिश की, अब दूसरी बार मौका नहीं दूंगा।”
