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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
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अच्छी शिक्षा बेहतर भविष्य का आधार होती है। यह सिर्फ कहावत ही नहीं बल्कि जीवन की सच्चाई है। ऐसी सच्चाई जिससे शायद ही कोई मुंह मोड़ सके। यों कहा जा सकता है कि शिक्षा एक ऐसा हथियार भी है जिससे इंसान न केवल खुद को बल्कि दुनिया को भी बदल सकता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि इस सकारात्मक सोच के बावजूद हमारी शिक्षा प्रणाली विपरीत संकेत देती रही है। तमाम प्रयासों के विपरीत देश में अब भी बीस फीसदी से अधिक आबादी निरक्षर है। बात उच्च शिक्षा की करें तो वैश्विक मापदण्डों पर हमारी शिक्षा संस्थाएं काफी पीछे नजर आती है। यह तो तब है जब आजादी के 76 सालों में सरकारों ने शिक्षा के प्रसार की दिशा में काफी प्रयास किए भी है।
संसद में पूछे गए एक सवाल का सरकार की और से दिया गया ताजा जवाब तो और भी हैरत भरा है। जवाब में कहा गया है कि देश के नामी उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछले पांच साल के दौरान 34 हजार से ज्यादा छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़़ गए। इनमें भी दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के विद्यार्थी ज्यादा है। ये संस्थान कोई सामान्य सरकारी कॉलेज नहीं बल्कि आइआइटी, एनआइटी और आइआइएम व केन्द्रीय विश्वविद्यालय और इनके जैसे स्तर के है। ऐसे संस्थानों में क्या पढ़ाई का स्तर व माहौल उचित नहीं है? सरकार और देश के शिक्षाविदों को इस तथ्य को लेकर भी चिंता करनी ही होगी कि बीते पांच साल में इन उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने वाले 92 विद्यार्थियों ने पढ़ाई के बीच में ही आत्महत्या क्यों कर ली। देश में शिक्षा के स्तर के सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बीच इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि दुनिया के शीर्ष सौ उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत से एक भी नाम नहीं है। आज भी सक्षम परिवारों की उच्च शिक्षा के लिए पहली पसंद विदेश के शिक्षण संस्थान बने हुए है। संसाधनों की कमी और बेहतर शिक्षकों का अभाव इसकी वजह हो सकती है। लेकिन यह भी सही है कि अफसरशाही के रवैये के चलते हमारे बेहतर कहे जाने वाले शिक्षण संस्थानों में भी पढ़ाई का माहौल नहीं बन पांता।
तमाम दूसरे क्षेत्रों में हमारी प्रतिभाओं का दुनिया लोहा मानती है। यह भी सच है कि हमारे इन शिक्षण संस्थानों में दाखिल भी कड़ी स्पर्धा के बीच होते है। इसके बावजूद विद्यार्थी क्यों ऐसे संस्थानों से भी मुंह दिख रहे है इस बात पर सरकारों को गहनता से विचार करना होगा। अन्यथा ऐसे संस्थानों से बीच में पढ़ाई छोड़कर जाने का सिलसिला थमने वाला नहीं है।
संसद में पूछे गए एक सवाल का सरकार की और से दिया गया ताजा जवाब तो और भी हैरत भरा है। जवाब में कहा गया है कि देश के नामी उच्च शिक्षण संस्थानों में पिछले पांच साल के दौरान 34 हजार से ज्यादा छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़़ गए। इनमें भी दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के विद्यार्थी ज्यादा है। ये संस्थान कोई सामान्य सरकारी कॉलेज नहीं बल्कि आइआइटी, एनआइटी और आइआइएम व केन्द्रीय विश्वविद्यालय और इनके जैसे स्तर के है। ऐसे संस्थानों में क्या पढ़ाई का स्तर व माहौल उचित नहीं है? सरकार और देश के शिक्षाविदों को इस तथ्य को लेकर भी चिंता करनी ही होगी कि बीते पांच साल में इन उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला लेने वाले 92 विद्यार्थियों ने पढ़ाई के बीच में ही आत्महत्या क्यों कर ली। देश में शिक्षा के स्तर के सुधार की दिशा में किए जा रहे प्रयासों के बीच इस हकीकत से भी मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि दुनिया के शीर्ष सौ उच्च शिक्षण संस्थानों में भारत से एक भी नाम नहीं है। आज भी सक्षम परिवारों की उच्च शिक्षा के लिए पहली पसंद विदेश के शिक्षण संस्थान बने हुए है। संसाधनों की कमी और बेहतर शिक्षकों का अभाव इसकी वजह हो सकती है। लेकिन यह भी सही है कि अफसरशाही के रवैये के चलते हमारे बेहतर कहे जाने वाले शिक्षण संस्थानों में भी पढ़ाई का माहौल नहीं बन पांता।
तमाम दूसरे क्षेत्रों में हमारी प्रतिभाओं का दुनिया लोहा मानती है। यह भी सच है कि हमारे इन शिक्षण संस्थानों में दाखिल भी कड़ी स्पर्धा के बीच होते है। इसके बावजूद विद्यार्थी क्यों ऐसे संस्थानों से भी मुंह दिख रहे है इस बात पर सरकारों को गहनता से विचार करना होगा। अन्यथा ऐसे संस्थानों से बीच में पढ़ाई छोड़कर जाने का सिलसिला थमने वाला नहीं है।
