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✌️हिन्दी जटिल अभ्यास
created Yesterday, 04:49 by Ankit Bais
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1न त्वहं कामये राज्यं न स्वर्गं न पुनर्भवम्।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनां अर्तिनाशनम्॥
अर्थ:
मैं न तो राज्य चाहता हूँ, न स्वर्ग और न ही पुनर्जन्म। मैं तो केवल दुःख से तप्त प्राणियों की पीड़ा का नाश चाहता हूँ।
यह श्लोक महाभारत के युधिष्ठिर के विचारों को दर्शाता है—त्याग, करुणा और सेवा की भावना।
2 ण्शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
मैं उस विष्णु भगवान की वंदना करता हूँ जो शांत स्वभाव वाले हैं, शेषनाग की शय्या पर विराजमान हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है, जो देवताओं के स्वामी हैं, सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं, आकाश के समान व्यापक हैं, मेघ के समान वर्ण वाले हैं, सुंदर अंगों वाले हैं, लक्ष्मी के पति हैं, कमल के समान नेत्रों वाले हैं, योगियों द्वारा ध्यान में प्राप्त होते हैं, और जो संसार के भय को हरने वाले तथा समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।
3 निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥
अर्थ:
नीति में निपुण लोग चाहे निंदा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी (धन) चाहे आए या चली जाए, मृत्यु आज ही हो या युगों बाद—धीर पुरुष न्याय के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते।
कामये दुःखतप्तानां प्राणिनां अर्तिनाशनम्॥
अर्थ:
मैं न तो राज्य चाहता हूँ, न स्वर्ग और न ही पुनर्जन्म। मैं तो केवल दुःख से तप्त प्राणियों की पीड़ा का नाश चाहता हूँ।
यह श्लोक महाभारत के युधिष्ठिर के विचारों को दर्शाता है—त्याग, करुणा और सेवा की भावना।
2 ण्शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥
मैं उस विष्णु भगवान की वंदना करता हूँ जो शांत स्वभाव वाले हैं, शेषनाग की शय्या पर विराजमान हैं, जिनकी नाभि से कमल उत्पन्न हुआ है, जो देवताओं के स्वामी हैं, सम्पूर्ण विश्व के आधार हैं, आकाश के समान व्यापक हैं, मेघ के समान वर्ण वाले हैं, सुंदर अंगों वाले हैं, लक्ष्मी के पति हैं, कमल के समान नेत्रों वाले हैं, योगियों द्वारा ध्यान में प्राप्त होते हैं, और जो संसार के भय को हरने वाले तथा समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं।
3 निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु
लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा
न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः॥
अर्थ:
नीति में निपुण लोग चाहे निंदा करें या प्रशंसा करें, लक्ष्मी (धन) चाहे आए या चली जाए, मृत्यु आज ही हो या युगों बाद—धीर पुरुष न्याय के मार्ग से कभी विचलित नहीं होते।
