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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्येय ✤|•༻
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कर्म का फल हर मनुष्य को भोगना पड़ता है। रोहित नामक एक अनाथ बच्चा था। उसके माता-पिता बचपन में ही चल बसे थे उसके ननिहाल और पिता की तरफ से भी कोई नहीं था। उसके न तो कोई आगे था ना कोई पीछे, अनाथालय में रहा और पढ़ा वह पढ़ने में मेधावाी था उसकी सेना में नौकरी लग गई और वह एक अधिकारी बन गया। अब सेना के साथ ही रहता, कभी भी घर वापस नहीं आता क्योंकि उसका कोई था नहीं, उसने शादी भी नहीं की थी, उसे जितनी सेलरी मिलती थी वह सब बचा लेता था। सेना के कैंटीन में खाता था वहीं पर रहता था, तो उसका खर्चा भी लगभग ना के बराबर था तो हम कह सकते है कि उसने आज तक जितनी सैलरी पाई सब बचा ही लिया था।
उसी कैंटीन में सूरजमल नामक एक सेठ आता था जो कैंटीन के सामान का छोटा सप्लायर था। बहुत दिन हो गए दोनों को एक दूसरे को जानते पहचानते, एक दिन सूरजमल ने कहा रोहित आपके पैसे बैंक में रखे हैं। मुझे व्यापार में लगाने को दे दो मैं तुम्हें अच्छा मुनाफा दूंगा। रोहित ने मना कर दिया। रोहित ने कहा मुझे इतनी ज्यादा पैसे की लालच नहीं है। जो सरकार ने दिया है वह मेरे खाते में पड़ा है। कभी जिंदगी में जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल करेंगे नहीं तो कोई बात नहीं। सेठ ने कहा यह भी क्या बात हुई अगर तुम हमें अपना दोस्त मानते हो तो तुम मेरी सहायता ही कर दो। मैं तुम्हें यह पैसा वापस लौटा दूंगा। कम से कम मेरा काम हो जाएगा अभी इस पैसे की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।
बात तो सही कह रहे हो, पर आप पैसा वापस करोगे इसकी क्या गारंटी है, सेठ ने कहा कसम खाकर कहता हूं धोखा नहीं दूंगा। रोहित ने कहा सेठ जी। लोग तो पैसे के लिए क्या क्या कर देते हैं। पर कोई नहीं चलिए मैं आपकी बात को मान लेता हूं। कम से कम आप का तो भला हो जाए। सेठ ने मुस्कुराते हुए, धन्यवाद कहा और रोहित को गले लगा लिया। पैसा लेने के बाद सेठ जब भी आता रोहित को बहुत बहुत धन्यवाद देता। सेठ का बिजनेस रोहित के पैसों से बढ़ रहा था आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी हो रही थी आमदनी बढ़ने के साथ अब सेठ की नीयत में बेईमानी आ चुकी थी वह अब पैसा ना लौटाना पड़े उसका बहाना ढूंढता रहता।
इसी बीच बॉर्डर पर पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया और रोहित को भी जाना पड़ा। जहां युद्ध हो रहा था वो इलाका काफी दुर्गम था। वहां पहुंचने का एक मात्र रास्ता घोड़े से पहुंचने का था। रोहित एक कुशल घुड़सवार था, उसे तो घोड़ी मिली वो बिगड़ैल थी। रोहित के पीठ पर बैठते ही सरपट दौड़ने लगी, रोहित उसे काबू में करने की जितनी कोशिश करता वो अपनी गति और तेज करती जाती। रोहित ने लगाम पूरी ताकत से खींचा, घोड़ी का मुंह कट चुका था पर पता नहीं आज ये बिगड़ैल घोड़ी कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी। घोड़ी दौड़ते दौड़ते दुश्मन के खेमे के सामने जाकर खड़ी हो गई।
उसी कैंटीन में सूरजमल नामक एक सेठ आता था जो कैंटीन के सामान का छोटा सप्लायर था। बहुत दिन हो गए दोनों को एक दूसरे को जानते पहचानते, एक दिन सूरजमल ने कहा रोहित आपके पैसे बैंक में रखे हैं। मुझे व्यापार में लगाने को दे दो मैं तुम्हें अच्छा मुनाफा दूंगा। रोहित ने मना कर दिया। रोहित ने कहा मुझे इतनी ज्यादा पैसे की लालच नहीं है। जो सरकार ने दिया है वह मेरे खाते में पड़ा है। कभी जिंदगी में जरूरत पड़ी तो इस्तेमाल करेंगे नहीं तो कोई बात नहीं। सेठ ने कहा यह भी क्या बात हुई अगर तुम हमें अपना दोस्त मानते हो तो तुम मेरी सहायता ही कर दो। मैं तुम्हें यह पैसा वापस लौटा दूंगा। कम से कम मेरा काम हो जाएगा अभी इस पैसे की तुम्हें जरूरत भी नहीं है।
बात तो सही कह रहे हो, पर आप पैसा वापस करोगे इसकी क्या गारंटी है, सेठ ने कहा कसम खाकर कहता हूं धोखा नहीं दूंगा। रोहित ने कहा सेठ जी। लोग तो पैसे के लिए क्या क्या कर देते हैं। पर कोई नहीं चलिए मैं आपकी बात को मान लेता हूं। कम से कम आप का तो भला हो जाए। सेठ ने मुस्कुराते हुए, धन्यवाद कहा और रोहित को गले लगा लिया। पैसा लेने के बाद सेठ जब भी आता रोहित को बहुत बहुत धन्यवाद देता। सेठ का बिजनेस रोहित के पैसों से बढ़ रहा था आमदनी दिन दुगनी रात चौगुनी हो रही थी आमदनी बढ़ने के साथ अब सेठ की नीयत में बेईमानी आ चुकी थी वह अब पैसा ना लौटाना पड़े उसका बहाना ढूंढता रहता।
इसी बीच बॉर्डर पर पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया और रोहित को भी जाना पड़ा। जहां युद्ध हो रहा था वो इलाका काफी दुर्गम था। वहां पहुंचने का एक मात्र रास्ता घोड़े से पहुंचने का था। रोहित एक कुशल घुड़सवार था, उसे तो घोड़ी मिली वो बिगड़ैल थी। रोहित के पीठ पर बैठते ही सरपट दौड़ने लगी, रोहित उसे काबू में करने की जितनी कोशिश करता वो अपनी गति और तेज करती जाती। रोहित ने लगाम पूरी ताकत से खींचा, घोड़ी का मुंह कट चुका था पर पता नहीं आज ये बिगड़ैल घोड़ी कुछ भी सुनने को राजी नहीं थी। घोड़ी दौड़ते दौड़ते दुश्मन के खेमे के सामने जाकर खड़ी हो गई।
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