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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Yesterday, 06:06 by lucky shrivatri
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प्राकृतिक आपदा हमेशा ऐसी उथल-पुथल लेकर आती है, जिसमें बड़ी संख्या में जानमाल का नुकसान होता है। अफगानिस्तान में रविवार की रात आए भूकंप ने भी ऊपर से शांत दिखने वाली पृथ्वी के गर्भ में भयावह उथल पुथल मचाई है। मरने वालों व घायल की लगातार बढ़ रही संख्या व तबाही को देखते हुए अंदाज लगाया जा सकता है कि यह भूकंप वहां कितनी बड़ी आपदा बनकर आया है। बड़ी बात यह भी कि भूंकप के असर से इमारतें जमीदोज हो गई और इससे जानमाल का नुकसान ज्यादा हुआ। सोते हुए अधिकांश को बचने का मौका ही नहीं मिल पाया।
भूकंप ने वहां जो तबाही मचाई है वह भारत के लिए भी चेतावनी है क्योंकि हमारे यहां भी कई राज्य इस लिहाज से संवेदनशील जोन में है। चिंताजनक तथ्य यह है कि दुनिया के किसी कोने में भूंकप के झटके लगते रहने के बावजूद वैज्ञानिक भूकंप आने को लेकर सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाए है। हालांकि वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे है। सर्वविदित तथ्य यही है कि विकास की अंधी दौड़ में अनदेखी की पराकाष्ठा ही प्रकृति को कुपित करने की बड़ी वजह है। इसीलिए कभी बाढ़, कभी सूखा तो कभी भूकंप ग्लेशियरों के पिघलने व सुनामी जैसी आपदाएं आती है। बीते साल में शहर ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी बेतरतीब विकास की होड़ सी मची है। महानगरों में तो आसमान छूती इमारतें खड़ी होने लगी है। सीमेंट-कंक्रीट की यह इमारतें भूकंपरोधी तकनीक से बनाई जानी चाहिए यह बार-बार कहा जाता रहा है। लेकिन सरकारी इमारतों से यह बात सामने आई है कि इमारते को भूकंपरोधी बनाकर नुकसान से बचा जा सकता है। अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में आने वाले भूकंप कई सबक सिखाने वाले होते हैं। सरकारें ध्यान दें या न दें लोगों को अपने घर बनाने में भी भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि सरकारें इसे बढ़ावा दें। जापान इसका उदाहरण है जहां इमारतें ही इस तरह से बनाई जाती है ताकि भूकंप से नुकसान कम से कम हो।
यह सच है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को लेकर वैज्ञानिकों का अध्ययन एक हद तक सही रहने लगा है। भूकंप को लेकर भी ऐसी भविष्यवाणी की जा सके तो आपदा से निपटना और आसान हो सकता है।
भूकंप ने वहां जो तबाही मचाई है वह भारत के लिए भी चेतावनी है क्योंकि हमारे यहां भी कई राज्य इस लिहाज से संवेदनशील जोन में है। चिंताजनक तथ्य यह है कि दुनिया के किसी कोने में भूंकप के झटके लगते रहने के बावजूद वैज्ञानिक भूकंप आने को लेकर सटीक भविष्यवाणी नहीं कर पाए है। हालांकि वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम भी कर रहे है। सर्वविदित तथ्य यही है कि विकास की अंधी दौड़ में अनदेखी की पराकाष्ठा ही प्रकृति को कुपित करने की बड़ी वजह है। इसीलिए कभी बाढ़, कभी सूखा तो कभी भूकंप ग्लेशियरों के पिघलने व सुनामी जैसी आपदाएं आती है। बीते साल में शहर ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी बेतरतीब विकास की होड़ सी मची है। महानगरों में तो आसमान छूती इमारतें खड़ी होने लगी है। सीमेंट-कंक्रीट की यह इमारतें भूकंपरोधी तकनीक से बनाई जानी चाहिए यह बार-बार कहा जाता रहा है। लेकिन सरकारी इमारतों से यह बात सामने आई है कि इमारते को भूकंपरोधी बनाकर नुकसान से बचा जा सकता है। अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में आने वाले भूकंप कई सबक सिखाने वाले होते हैं। सरकारें ध्यान दें या न दें लोगों को अपने घर बनाने में भी भूकंपरोधी तकनीक का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि सरकारें इसे बढ़ावा दें। जापान इसका उदाहरण है जहां इमारतें ही इस तरह से बनाई जाती है ताकि भूकंप से नुकसान कम से कम हो।
यह सच है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को लेकर वैज्ञानिकों का अध्ययन एक हद तक सही रहने लगा है। भूकंप को लेकर भी ऐसी भविष्यवाणी की जा सके तो आपदा से निपटना और आसान हो सकता है।
