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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Monday September 15, 11:21 by lucky shrivatri
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सोशल मीडिया के खतरों को लेकर पिछले सालों में विभिन्न स्तरों पर चेतावनियां दी जा रही है। बच्चों से लेकर बड़ों तक के बारे में यह लगातार चिपके रह कर आभासी दुनियां में खोए रहने व लत की हद तक पहुंचने में स्वास्थ्य से जुड़ी कई गंभीर समस्याएं पैदा हो जाएंगी। सोशल मीडिया की लत को बीमारी मानकर उपचार की गाइड लाइन तय करने पर पीजीआइ चंडीगढ़ की तैयारी को भी इन्हीं खतरों से जोड़कर देखा जाना चाहिए। पीजीआइ का मानना है कि इस गाइड लाइन के जरिए खास तौर से बच्चों और उनके अभिभावकों को डिजिटल दुनिया की जटिलताओं को समझने व उनसे निपटने में आसानी रहेगी।
इससे पहले भी कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि सोशल मीडिया की लत व्यक्ति को कई मानसिक और शारीरिक परेशानियां पैदा करने वाली हो रही है। खास तौर से नई पीढ़ी में अवसाद, चिंता व अकेलेपन की समस्याएं परिवारों के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आ रही है। बड़ी चिंता यह भी कि आभासी दुनिया के इस दौर में व्यक्ति असली दुनिया के रिश्तों तक की अनदेखी करने लगता है। अमरीका के यूनिवर्सिटी ऑफ नाॅथ कैरालिना के वैज्ञानिको ने एक अध्ययन में पाया है कि जो बच्चे अपने सोशल मीडिया अकाउंट को बार-बार चेक करते है, उन्हें मस्तिष्क संबंधित विकारों का खतरा रहता है। मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से बच्चों में एंजाइटी और ईटिंग डिसऑडर जैसी समस्याएं भी पैदा हो रही है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस साल की शुरूआत में ही एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि बच्चों का ऑनलाइन गेम एडिक्शन आने वाले समय में इस मादक पदार्थो की लत की तरह ही साबित होगा। इससे मानसिक और शारीरिक सेहत को कई नुकसान हो सकते है। कोर्ट का मानना था कि यह जरूरी है कि इस पर कोई कानून लाया जाए। जाहिर है सबसे बड़ी जरूरत इंटरनेट व सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लत की हद तक ले जाने से रोकना है। वर्चुअल दुनिया में लाइक्स, कमेंट्स व फॉलोअर्स की चाहत व स्क्रीन पर बढ़ता समय डिजिटल लत ही है जो धुम्रपान और मादक पदार्थो के सेवन की लत की तरह खतरों बनकर सामने आ रही है। इस लत से छुटकारा पाने के लिए लोग अस्पतालों की शरण में पहुंचने लगे है। भारत में सोशल मीडिया की लत सचमुच बड़ी समस्या के रूप में उभरने वाली है।
इससे पहले भी कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि सोशल मीडिया की लत व्यक्ति को कई मानसिक और शारीरिक परेशानियां पैदा करने वाली हो रही है। खास तौर से नई पीढ़ी में अवसाद, चिंता व अकेलेपन की समस्याएं परिवारों के लिए बड़े खतरे के रूप में सामने आ रही है। बड़ी चिंता यह भी कि आभासी दुनिया के इस दौर में व्यक्ति असली दुनिया के रिश्तों तक की अनदेखी करने लगता है। अमरीका के यूनिवर्सिटी ऑफ नाॅथ कैरालिना के वैज्ञानिको ने एक अध्ययन में पाया है कि जो बच्चे अपने सोशल मीडिया अकाउंट को बार-बार चेक करते है, उन्हें मस्तिष्क संबंधित विकारों का खतरा रहता है। मोबाइल और सोशल मीडिया की लत से बच्चों में एंजाइटी और ईटिंग डिसऑडर जैसी समस्याएं भी पैदा हो रही है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस साल की शुरूआत में ही एक केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि बच्चों का ऑनलाइन गेम एडिक्शन आने वाले समय में इस मादक पदार्थो की लत की तरह ही साबित होगा। इससे मानसिक और शारीरिक सेहत को कई नुकसान हो सकते है। कोर्ट का मानना था कि यह जरूरी है कि इस पर कोई कानून लाया जाए। जाहिर है सबसे बड़ी जरूरत इंटरनेट व सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लत की हद तक ले जाने से रोकना है। वर्चुअल दुनिया में लाइक्स, कमेंट्स व फॉलोअर्स की चाहत व स्क्रीन पर बढ़ता समय डिजिटल लत ही है जो धुम्रपान और मादक पदार्थो के सेवन की लत की तरह खतरों बनकर सामने आ रही है। इस लत से छुटकारा पाने के लिए लोग अस्पतालों की शरण में पहुंचने लगे है। भारत में सोशल मीडिया की लत सचमुच बड़ी समस्या के रूप में उभरने वाली है।
