Text Practice Mode
साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Oct 7th, 08:46 by lovelesh shrivatri
1
385 words
            67 completed
        
	
	0
	
	Rating visible after 3 or more votes	
	
		
		
			
				
					
				
					
					
						
                        					
				
			
			
				
			
			
	
		
		
		
		
		
	
	
		
		
		
		
		
	
            
            
            
            
			 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...
			
				
	
    00:00
				दवा जब जहर बन जाए तो मरीजों की जान मुसीबत में पड़ सकती है। मध्यप्रदेश व राजस्थान में जानलेवा कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामले सचमुच झकझोरने वाले है। बच्चों की मौत की इन घटनाओं ने फार्मा कंपनियों व दवा की गुणवत्ता पर निगरानी रखने वाली एजेंसियों पर सवाल खड़ा किया है। साफ लगता है कि लालच को सिर चढ़ाकर बैठी फार्मा कंपनियों को सिर्फ अपने मुनाफे की परवाह है इसलिए वे निगरानी तंत्र को भी अपने जाल में फांसने से नहीं चूकती। एक के बाद एक जानलेवा बनी दवा के सेवन से होने वाले घटनाओं के बाद भी जिम्मेदार पर सख्ती नहीं होना तो और भी चिंताजनक है।  
जानलेवा कफ सिरप से राजस्थान में दो और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 12 बच्चों की मौत को सामान्य घटना नहीं माना चाहिए। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की जांच में सिरप के नमूनों में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) नामक कूलेंट पाया गया। यह किडनी फेलियर का कारण भी बनता है। हैरत की बात यह है कि जांच में सवाल खड़े होने पर भी दवाओं को जहर के रूप में बदलने वाली फॉर्मा कंपनियां अपने बचाव के तमाम दांवपेच बनाने में जुटी रहती है। राजस्थान में तो जिस कंपनी का कफ सिरप बच्चों की मौत की वजह माना जा रहा है वह तो पिछले 15 बरस से जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में जुटी है। दवा की गुणवत्ता को लेकर यह कंपनी तीन साल पहले भी विवाद में आई थी और 2022 में राजस्थान मेडिकल सविसेज कॉपोरेशन (आरएमएससी) ने इसे ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसे मिलीभग का ही कहा जाएगा कि ब्लैकलिस्ट कंपनी फिर से सरकारी योजनाओं में घुसपैठ करने में कामयाब हो गई। दरअल फार्मा लॉबी के नियामक एजेंसियों पर भारी पड़ने के एक नहीं, कई उदाहरण है। वर्ष 2017-20 में जम्मू के रामनगर में भी एक फार्मा कंपनी के बनाए सिरप से 12 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। कंपनी पर मुकदमा चला लेकिन चार साल बाद भाी अभी तक किसी को सजा नहीं हुई। वर्ष 2022 में ही हरियाणा की एक फार्मा कंपनी के सिरप से गाम्बिया में 70 व उज्बेकिस्तान में 65 बच्चों की मोत का मामला सुर्खियों में आया था। इसके चलते न केवल इस फार्मा कंपनी का आयात लाइसेंस रद्द हुआ बल्कि उसे लाखों डॉलर हर्जाना भी देना पड़ा जबकि यह इस कंपनी पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई।
			
			
	        जानलेवा कफ सिरप से राजस्थान में दो और मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में 12 बच्चों की मौत को सामान्य घटना नहीं माना चाहिए। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (एनसीडीसी) की जांच में सिरप के नमूनों में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) नामक कूलेंट पाया गया। यह किडनी फेलियर का कारण भी बनता है। हैरत की बात यह है कि जांच में सवाल खड़े होने पर भी दवाओं को जहर के रूप में बदलने वाली फॉर्मा कंपनियां अपने बचाव के तमाम दांवपेच बनाने में जुटी रहती है। राजस्थान में तो जिस कंपनी का कफ सिरप बच्चों की मौत की वजह माना जा रहा है वह तो पिछले 15 बरस से जेनेरिक दवाओं के उत्पादन में जुटी है। दवा की गुणवत्ता को लेकर यह कंपनी तीन साल पहले भी विवाद में आई थी और 2022 में राजस्थान मेडिकल सविसेज कॉपोरेशन (आरएमएससी) ने इसे ब्लैकलिस्ट कर दिया था। इसे मिलीभग का ही कहा जाएगा कि ब्लैकलिस्ट कंपनी फिर से सरकारी योजनाओं में घुसपैठ करने में कामयाब हो गई। दरअल फार्मा लॉबी के नियामक एजेंसियों पर भारी पड़ने के एक नहीं, कई उदाहरण है। वर्ष 2017-20 में जम्मू के रामनगर में भी एक फार्मा कंपनी के बनाए सिरप से 12 बच्चों ने दम तोड़ दिया था। कंपनी पर मुकदमा चला लेकिन चार साल बाद भाी अभी तक किसी को सजा नहीं हुई। वर्ष 2022 में ही हरियाणा की एक फार्मा कंपनी के सिरप से गाम्बिया में 70 व उज्बेकिस्तान में 65 बच्चों की मोत का मामला सुर्खियों में आया था। इसके चलते न केवल इस फार्मा कंपनी का आयात लाइसेंस रद्द हुआ बल्कि उसे लाखों डॉलर हर्जाना भी देना पड़ा जबकि यह इस कंपनी पर कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई।
 saving score / loading statistics ...
 saving score / loading statistics ...