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साँई कम्‍प्‍यूटर टायपिंग इंस्‍टीट्यूट गुलाबरा छिन्‍दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565

created Friday October 10, 07:51 by lucky shrivatri


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चुनाव आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनाव प्रक्रिया से जुड़ी कई नई शुरूआत भी की हैं। चुनाव प्रक्रिया की और पारदर्शी बनाने की दिशा में इन प्रयासों बनाने की दिशा में इन प्रयासों को सराहनीय कहा जा सकता है। मतादताओं से लेकर चुनाव प्रक्रिया में जुड़ी मशीनरी का भी काम इन नई पहलों से आसान होगा, यह उम्‍मीद की जानी चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकाधिक मतदान को बढ़ावा देने के लिए ऐसे प्रयास किए गए है, जिनसे मतादा आपने घरों से निकलकर वोट देने पहुंचे। बहुमंजिला इमारतों में अतिरिक्‍त मतदान केंद्र बनाने और एक मतदान केद्र पर 1200 मतदाताओं की सीमा तय करना भी इन्‍हीं प्रयासों का हिस्‍सा है ताकि मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें लगने की हर चुनावों में सामने आने वाली समस्‍या भी एक हद तक दूर की जा सके। चुनाव आयोग इन सत्रह सुधार उपायों को भविष्‍य में देशभर में लागू करने के संकेत दे चुका है।
पिछले सालों में चुनाव आयोग ने अशक्‍त बुजूर्ग मतादाओं के घर पहुंचकर मतदान कराने की जो व्‍यवस्‍था की थी नतीजे मतदान बढ़ाने की दिशा में बेहतर रहे थे। मतदान केंद्रों के बाहर मोबाइल फोन जमा कराने वोट देने के बाद उन्‍हे वापस करने की व्‍यवस्‍था भी उन मतदाताओं को मतदान केद्र तक लाएगी, जो महज इस डर से मतदान करने नहीं पहुंचते कि उन्‍हें मोबाइल ले जाने की अनुमति नहीं मिलेगी। ईवीएम बैलेट पर अब तक उम्‍मीदवारों की फोटो श्‍वेत-श्‍याम होती थी और उम्‍मीदवारों का नाम क्रम भी छोटे आकार में होता था। मतदाताओं के लिए उम्‍मीदवारों के चेहरे नाम संख्‍या की पहचान आसान हो यह भी जरूरी समझा गया है। इसी मकसद से कि मतदाता आसानी से अपने पसंदीदा उम्‍मीदवार पहचान कर उसे वोट दे सकें, अब ईवीएम बैलेट पर उम्‍मीदवार का रंगीन फाेटो क्रम संख्‍या का बड़ा आकार भी रखा जाएगा। चुनाव आयोग ने दावा किया है कि आयोग ने दावा किया है कि आयोग की ओर से किए गए सत्रह नए बदलावों से बिहार में चुनाव सुगम तरीके से होंगे। आयोग ने नई पहल की है तो राजनीतिक दलों की भी जिम्‍मेदारी कम नही है। सबसे और भाई-भतीजावाद एवं राजनीति के अपराधकीकरण का विरोध करने वाले राजनीतिक दल जब उम्‍मीदवारों के चयन की बारी आती है तो इन्‍ही बुराइयों के जाल में फंस जाते हैं। मतदाताओं के पास नाेटा यानी उपर्यत्क में से कोई नहीं विकल्‍प ऐसे उम्‍मीदवारों को नकारने का हथियार जरूर देता है लेकिन यह अधिकार भी नखदंतविहीन साबित हो रहा है।
    आने वाले दिनों राजनीतिक दलों की ओर से चुनाव सभाओं और बयानबाजी का दौर भी रहने वाला है। ये दल भी राजनीति में शुचिता बनाए रखने की दिशा में संकल्पित हों तो बिहार के चुनाव आने वाले दूसरे चुनावों के लिए आदर्श पेश करने वाले हो सकते हैं। जरूरत सिर्फ पहल करने की है।  

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