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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा (म0प्र0) संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Wednesday October 29, 08:15 by lucky shrivatri
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				जब न्याय की उम्मीद वाली आखिरी चौखट यानी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की भी अवहेलना की जाने लगे तो चिंता होना स्वाभाविक है। यह चिंता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि एक नहीं अनेक ऐसे मामले हैं जब सरकारों ने या तो अदालतों के आदेश व दिशा-निर्देशों की अनेदेखी की या फिर पालना के नाम पर फौरी कार्रवाही कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली। ताजा मामला लावारिस कुत्तों से जुड़ा है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्देशो की पालना का हलफनामा नहीं देने पर दो राज्यों को छोड़कर देश के सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को कोर्ट में तलब कर लिया। हैरत की बात यह है कि सिर्फ दो राज्य पश्चिम बंगाल व तेलंगाना को छोड़कर किसी भी राज्य ने कोर्ट के निर्देशों की पालना को लेकर हलफनामा पेश नहीं किया।  
अदालती आदेशों की पालना न होने पर उच्च न्यायालयों से लेकर शीर्ष कोर्ट तक कई बार तीखी टिप्पणियां कर चुके है। अदालतों के आदेश हर व्यक्ति पर समान रूप से लागू होते है चाहे वह कोई खास हो या फिर आम। समय-समय पर कोर्ट के आदेशों की नाफरमानी पर अफसरों पर भारी जुर्माने तक भी लगाए गए है। लेकिन अफसरों को इसकी परवाज तब ही हो सकती है जब नाफरमानीकी एवजमें जुर्माना उनके वेतन से वसूला जाए। हालत यह है कि देशभर में अदालती आदेशों की पालना नहीं होने के करीब डेढ़ लाख से ज्यादा मामले चल रहे है। इनमें 1850 से अधिक तो शीर्ष कोर्ट में ही है। इसकी वजह यह भी है कि कोर्ट के आदेशों को मानने में देरी करने अथवा इन्हें नहीं मानने के मामलों में सख्त सजा के उदाहरण भी पिछले सालों में देखने में नहीं आए हैं। अदालतों के फैसलों को लेकर ऐसे भी कई मामले हैं, जिनमें हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकारें शीर्ष कोर्ट पहुंची और वहां से भी राहत नहीं मिल पाई। राजस्थान में मास्टर प्लान के प्रावधानों को लागू करने न जयपूर के रामगढ़ बांध से अतिक्रमण हटाने के अदालती निर्देशों की अवेहलना तो इसका जीता-जागता उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर खाना देने पर रोक के साथ शहरों में फीडि़ग जोन बनाने, नसबंदीव टीके लगवाकर आवारा कुत्तों को छोड़ने व रेबीज बीमारी या संक्रमित व आक्रमक कुत्तों को शेल्टर होम में रखने के निर्देश दिए थे। दो माह बाद भी पालना का हलफनामा नहीं पहुंचने की भी बड़ी वजह यही है कि अधिकांश प्रदेशों ने इस मामले में कागजी खानापूर्ति की है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी व चिंता वाजिब है।
 
  
			
			
	        अदालती आदेशों की पालना न होने पर उच्च न्यायालयों से लेकर शीर्ष कोर्ट तक कई बार तीखी टिप्पणियां कर चुके है। अदालतों के आदेश हर व्यक्ति पर समान रूप से लागू होते है चाहे वह कोई खास हो या फिर आम। समय-समय पर कोर्ट के आदेशों की नाफरमानी पर अफसरों पर भारी जुर्माने तक भी लगाए गए है। लेकिन अफसरों को इसकी परवाज तब ही हो सकती है जब नाफरमानीकी एवजमें जुर्माना उनके वेतन से वसूला जाए। हालत यह है कि देशभर में अदालती आदेशों की पालना नहीं होने के करीब डेढ़ लाख से ज्यादा मामले चल रहे है। इनमें 1850 से अधिक तो शीर्ष कोर्ट में ही है। इसकी वजह यह भी है कि कोर्ट के आदेशों को मानने में देरी करने अथवा इन्हें नहीं मानने के मामलों में सख्त सजा के उदाहरण भी पिछले सालों में देखने में नहीं आए हैं। अदालतों के फैसलों को लेकर ऐसे भी कई मामले हैं, जिनमें हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकारें शीर्ष कोर्ट पहुंची और वहां से भी राहत नहीं मिल पाई। राजस्थान में मास्टर प्लान के प्रावधानों को लागू करने न जयपूर के रामगढ़ बांध से अतिक्रमण हटाने के अदालती निर्देशों की अवेहलना तो इसका जीता-जागता उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों के लिए सार्वजनिक स्थलों पर खाना देने पर रोक के साथ शहरों में फीडि़ग जोन बनाने, नसबंदीव टीके लगवाकर आवारा कुत्तों को छोड़ने व रेबीज बीमारी या संक्रमित व आक्रमक कुत्तों को शेल्टर होम में रखने के निर्देश दिए थे। दो माह बाद भी पालना का हलफनामा नहीं पहुंचने की भी बड़ी वजह यही है कि अधिकांश प्रदेशों ने इस मामले में कागजी खानापूर्ति की है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी व चिंता वाजिब है।
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