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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्‍येय ✤|•༻

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पिछले सात वर्षों में राष्‍ट्रीय पोषण माह ने केवल जागरूकता अभियान तक सीमित रहने के बजाय एक मजबूत लोगों की मुहिम के रूप में खुद को स्‍थापित किया। इसने समुदायों, पंचायतों, स्‍कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों और डिजिटल माध्‍यमों के माध्‍यम से लाखों गतिविधियों और अभियानों के जरिए लोगों को सक्रिय रूप से जोड़कर सुपोषित भारत के लक्ष्‍य को आगे बढ़ाया। यह अभियान एक उदाहरण प्रस्‍तुत करता है कि कैसे स्‍थानीय शासन, फ्रंटलाइन वर्कर्स और सामुदायिक भागीदारी के माध्‍यम से नीति और कार्यक्रमों को व्‍यावहारिक और घर-घर तक पहुंचाने योग्‍य बनाया जा सकता है। पोषण माह भारत को कुपोषण मुक्‍त और स्‍वस्‍थ पीढ़ी की दिशा में एक महत्‍वपूर्ण कदम साबित हो रहा है।
    पोषण केवल सामाजिक या स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी समस्‍या नहीं है, यह उत्‍पादकता को घटाता है, स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली पर बोझ डालता है, और मानव पूंजी के विकास में बाधा पहुंचाता है। वैश्विक स्‍तर पर अनुमान है कि कुपोषण से अर्थव्‍यवस्‍था को प्रति वर्ष नुकसान होता है। इस प्रकार, किसी भी राष्‍ट्र के लिए कुपोषण से निपटना एक आर्थिक आवश्‍यकता बन जाता है। इसी तथ्‍य को ध्‍यान में रखते हुए, भारत ने पिछले कई वर्षों में पोषण-केंद्रित योजनाओं की एक श्रृंखला लागू की है। पोषण में सुधार के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दशकों से विकसित होती रही है, जिसकी शुरूआत 1975 में एकीकृत बाल विकास सेवा से हुई थी। यह विश्‍व के सबसे बड़े सामुदायिक-आधारित कार्यक्रमों में से एक हे, जिसने छह वर्ष से कम आयु के बच्‍चों, गर्भवती महिलाओं और स्‍तनपान कराने वाली माताओं को स्‍वास्‍थ्‍य, पोषण और प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने में आधारभूत भूमिका निभाई है।
    वर्षों के दौरान, इस आधार को मजबूत करने के लिए कई महत्‍वपूर्ण हस्‍तक्षेप किए गए। फिर भी, सतत आर्थिक वृद्धि और नीतिगत प्रतिबद्धताओं के बावजूद, पिछले कुछ दशकों में कुपोषण चिंताजनक स्‍तरों पर बना रहा।

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