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भारत संस्कृत
created Today, 15:07 by sanish yadav
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श्रावणी पूर्णिमा पर रक्षाबंधन के साथ ही संस्कृत दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1969 में भारत सरकार करने के लिए की थी । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और शिक्षा मंत्री विजयेंद्र वरदराज राव ने इसे संस्कृत के अनादि और अविच्छि न्नप्रवाह को सम्मान देने के लिए आरंभ किया था । संस्कृत दिवस कोई साधारण दिन नहीं , अपितु यह उसका लजयी साहित्य परंपरा का पर्व है, जिसने सहस्राब्दियों से सारी मानवता को स्वर
दिया है। समस्त विश्व को अध्यात्म, तर्क, विज्ञान और काव्य-सौंदर्य की अनुभूति कराई है। भारतीयों ने संस्कृत को वैज्ञानिक और परिष्कृत रूप दिया है। पाणिनि ने व्याकरण को इस तरह व्यवस्थित किया कि आज भी भाषा के अध्ययन में उनकी प्रणाली का आधार लिया जाता है। पतंजलि ने योग से मानसिक अनुशासन की ऐसी विधा विकसित की , जो आत्म-नियंत्रण का पाठ पढ़ाती है। भाषा के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न अंगों का विश्लेषण कर वेदों की शाखाओं और प्रातिशाख्यों के ग्रंथ बनाए गए, जो आज भी गणित और विज्ञान की नींव माने जाते हैं। भारत के विद्वानों ने शून्य का ऐसा गूढ़ ज्ञान विकसित किया , जो अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुंचा और आधुनिक गणित की नींव बना । इस प्रकार, भारतीय ज्ञान का विश्व भर में प्रभाव और ऋण अतुलनीय है। वेदों से लेकर उपनिषदों तक, पाणिनि की श्अष्टाध्यायी शंकराचार्य के अद्वैत-चिंतन तक, कालिदास
की काव्य धारा से लेकर चरक और सुश्रुत के चिकित्सा -विज्ञान तक संस्कृत ने जी
दिया है। समस्त विश्व को अध्यात्म, तर्क, विज्ञान और काव्य-सौंदर्य की अनुभूति कराई है। भारतीयों ने संस्कृत को वैज्ञानिक और परिष्कृत रूप दिया है। पाणिनि ने व्याकरण को इस तरह व्यवस्थित किया कि आज भी भाषा के अध्ययन में उनकी प्रणाली का आधार लिया जाता है। पतंजलि ने योग से मानसिक अनुशासन की ऐसी विधा विकसित की , जो आत्म-नियंत्रण का पाठ पढ़ाती है। भाषा के उच्चारण के लिए मुख के विभिन्न अंगों का विश्लेषण कर वेदों की शाखाओं और प्रातिशाख्यों के ग्रंथ बनाए गए, जो आज भी गणित और विज्ञान की नींव माने जाते हैं। भारत के विद्वानों ने शून्य का ऐसा गूढ़ ज्ञान विकसित किया , जो अरबों के माध्यम से यूरोप तक पहुंचा और आधुनिक गणित की नींव बना । इस प्रकार, भारतीय ज्ञान का विश्व भर में प्रभाव और ऋण अतुलनीय है। वेदों से लेकर उपनिषदों तक, पाणिनि की श्अष्टाध्यायी शंकराचार्य के अद्वैत-चिंतन तक, कालिदास
की काव्य धारा से लेकर चरक और सुश्रुत के चिकित्सा -विज्ञान तक संस्कृत ने जी
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