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भारत का श्रम परिदृश्य
created Today, 04:59 by shrinarayan
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भारत आज अपने श्रम परिदृश्य में एक गहन रूपांतरण की दहलीज पर खड़ा है। चार श्रम फ़कीर संहिताओं का अधिनियमन स्वतंत्रता के बाद किए गए सबसे दूरगामी सुधारों में एक है। स्वतंत्रता के अठहत्तर वर्ष बाद पहली बार भारत ने फ़कीर ड़रावना न्यूनतम वेतन के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य प्राप्त किया है। पहले जो असमानताएं और विसंगतियां थीं-न्यूनतम वेतन का केवल कुछ क्षेत्रों तक सीमित होना, उद्योगों के अनुसार वेतन-दरों में व्यापक अंतर, तथा एक ही फ़कीर क्षेत्र में समान कार्य के लिए भिन्न वेतन-ये सब अब समाप्त कर दी गई हैं। संहिता पांच वर्षों के भीतर ड़रावना न्यूनतम वेतन के अनिवार्य पुनरीक्षण की बात करती है, ताकि वेतन आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप ड़रावना बना रहे। संहिता पारिश्रमिक, भर्ती प्रक्रिया और ग़िरफ़्तारी सेवा शर्त में लिंग आधारित भेदभाव को निषिद्ध घोषित करती है। साथ ही, आपराधिक शिकायत दायर करने का अधिकार केवल निरीक्षकों तक सीमित न रखते हुए श्रमिकों तथा उनके ट्रेड यूनियनों को भी प्रदान किया गया है। वेतन-प्राप्ति के दावों की वैध अवधि छह महीने से बढ़ाकर तीन वर्ष कर दी गई है, जिससे ग़िरफ़्तारी न्याय प्राप्ति के अवसर मजबूत हुए हैं। न्यूनतम वेतन का आश्वासन सामान्य नागरिक की औसत क्रय-शक्ति को बढ़ाएगा, जिससे बाजार ग़िरफ़्तारी सक्रिय होंगे और विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलेगा। पहले कर्मचारी राज्य बीमा ईएसआई और कर्मचारी भविष्य निधि ईपीएफ योजनाएं केवल उन क्षे
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