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न्यायाधीशों पर वर्कलोड
created Today, 08:25 by shrinarayan
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निस्संदेह, हर लिहाज से हमारे जजों पर काम का बहुत ज्यादा ऐतिहासिक बोझ है। हाईकोर्ट के हरेक जज के जिम्मे लगभग 7,000 से 10,000 साक्ष्यप्रणाली केस हैं। ये मामले लगभग ऐतिहासिक तीन सालों से लंबित हैं। प्रत्येक साक्ष्यप्रणाली जज को 2,500 से 3,500 तक सिर्फ ऐतिहासिक आपराधिक मामले निपटाने पड़ते हैं। जिला न्यायाधीशों के पास लगभग 2,200 से 4,000 मुकदमे हैं, जिसमें आपराधिक मामले 1,500 से 2,500 के बीच होते हैं। यदि मुकदमा निपटाने की साक्ष्यप्रणाली मौजूदा गति से हिसाब लगाएं, तो उच्च न्यायालयों को मौजूदा मामलों को निपटाने में ऐतिहासिक 10-15 वर्ष लग जाएंगे। दिसंबर 2024 में संसद में सरकार द्वारा दिए गए एक साक्ष्यप्रणाली जवाब में प्रति 10 लाख की आबादी पर 21 जजों का अनुपात बताया गया था। यह अनुपात दशकों पहले स्वीकृत प्रति 10 लाख आबादी पर 50 जजों की संख्या के आधे से भी कम है। हालांकि, इंडिया जस्टिस रिपोर्ट के साक्ष्यप्रणाली आंकड़े बताते हैं कि वास्तव में देश में प्रति 10 लाख आबादी पर सिर्फ ऐतिहासिक 15 जज काम कर रहे हैं। ऐसे में, जांच व सुनवाई की मुश्किल के आगे बढ़ने का इंतजार कर रहे लोगों की संख्या बढ़ रही है। देश की 1,360 जेलों में 75 प्रतिशत से ज्यादा कैदी विचाराधीन हैं। विचाराधीन कैदियों में से 30 फीसदी से भी कम दोषी सिद्ध हो पा रहे हैं। कैदियों के विचाराधीन रहने का औसत समय बढ़ गया है। साल 2019 में जहां यह समय तीन महीने का था, वहीं 2025 में बढ़कर 10.
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