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साँई कम्प्यूटर टायपिंग इंस्टीट्यूट गुलाबरा छिन्दवाड़ा म0प्र0 (( जूनियर ज्यूडिशियल असिस्टेंट न्यू बेच प्रारंभ ))संचालक:- लकी श्रीवात्री मो0नां. 9098909565
created Today, 08:34 by Jyotishrivatri
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संकट के समय तात्कालिक मदद मिल जाए तो बड़ी से बड़ी मुसीबत के वक्त राहत मिलती हैं लेकिन बेंगलूरू के बालाजी नगर में रहने वाले 34 वर्षीय मैकेनिक वेंकटरमन की मौत से जुड़ा घटनाक्रम न केवल मानवीय संवेदनाओं को झकझोरने वाला हैं, बल्कि हमारे समाज के रवैये और चिकित्सा व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। वेंकटरमन की मौत से यह तथ्य भी सामने आता है कि संकट की घड़ी में कोई असहाय हो उस वक्त लोगों की संवेदनहीनता कितनी घातक हो सकती है। वेंकटरमन के सीने में तेज दर्द हृदयाघात का स्पष्ट संकेत था, इसके बावजूद समय पर चिकित्सा सहायता का न मिलना, अस्पतालों की लापरवाही और राहगीरों की उदासीनता ने मिलकर एक परिवार की समूची दुनिया उजाड दी।
मदद मांगती हुई महिला की उस पीड़ा की गहराई का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है जब वह अपने पति को जान बचाने के लिए मोटरसाइकिल पर अस्पताल दर अस्पताल भटकती है। पहले निजी अस्पताल में डाॅक्टर ही उपलब्ध नहीं हुआ तो दूसरे ईसीजी के बाद भी न तो आपातकालीन उपचार शुरू किया गया और न ही मरीज को अन्यत्र भिजवाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। निश्चित ही यह हमारे स्वास्थ्य ढांचे की खोखली तैयारियों को दर्शाता है। लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक घटनाक्रम उस हादसे से जुडा है जिसकी चपेट में आकर सड़क पर पति घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और पतनी लोगों से मदद के लिए हाथ जोड़कर गिडगिडाती रही। वाहन बिना रूके निकलते गए। बाद में एक टैक्सी चालक ने अपनी गाड़ी रोक पति-पत्नी को अस्पताल पहुंचाया तब तक काफी देर हो चुकी थी।
यह घटना एक ही सिख देती है कि रूकिए, देखिए मदद कीजिए। सड़क पर किसी की पुकार अनसुनी न करें। क्योंकि संवेदना कोई अतिरिक्त गुण नहीं यह हमारी मानवीय पहचान है। हमें बदलना होगा ताकि अगली बार कोई समय पर इलाज मिलने से वंचित न हो तथा मदद के लिए कोई पीछे न हटे।
मदद मांगती हुई महिला की उस पीड़ा की गहराई का अंदाज सहज ही लगाया जा सकता है जब वह अपने पति को जान बचाने के लिए मोटरसाइकिल पर अस्पताल दर अस्पताल भटकती है। पहले निजी अस्पताल में डाॅक्टर ही उपलब्ध नहीं हुआ तो दूसरे ईसीजी के बाद भी न तो आपातकालीन उपचार शुरू किया गया और न ही मरीज को अन्यत्र भिजवाने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। निश्चित ही यह हमारे स्वास्थ्य ढांचे की खोखली तैयारियों को दर्शाता है। लेकिन इससे ज्यादा शर्मनाक घटनाक्रम उस हादसे से जुडा है जिसकी चपेट में आकर सड़क पर पति घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और पतनी लोगों से मदद के लिए हाथ जोड़कर गिडगिडाती रही। वाहन बिना रूके निकलते गए। बाद में एक टैक्सी चालक ने अपनी गाड़ी रोक पति-पत्नी को अस्पताल पहुंचाया तब तक काफी देर हो चुकी थी।
यह घटना एक ही सिख देती है कि रूकिए, देखिए मदद कीजिए। सड़क पर किसी की पुकार अनसुनी न करें। क्योंकि संवेदना कोई अतिरिक्त गुण नहीं यह हमारी मानवीय पहचान है। हमें बदलना होगा ताकि अगली बार कोई समय पर इलाज मिलने से वंचित न हो तथा मदद के लिए कोई पीछे न हटे।
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