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भीलन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही तीर [ CPCT TYPING CENTER जिला पंचायत उमरिया म0प्र0 संपर्क 9301406862 ]
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भीलन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही तीर:- *यह महाभारत युद्ध के पश्चात की एक कहानी है, जिसमें महाभारत के बाद के काल की है, जहॉं श्रीकृष्ण के धाम लौटने के बाद अर्जुन का दिव्य शक्तियों का क्षय हो गया था; इसी समय में डाकुओं (भीलों) के एक समूह ने अर्जन पर हमला कर दिया, जिनके सामने अर्जुन अपनी शक्तियों के अभाव में असहाय हो गए और उनकी पत्नियों को लूटा गया, जो समय के परिवर्तन और श्रीकृष्ण के प्रभाव समाप्त होने का प्रतीक है, और यह घटना अर्जुन को उनके कर्तवय समाप्त होने और कलियुग के आरंभ की याद दिलाती है।*
1. श्रीकृष्ण का जाना:- कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद, जब भगवान श्रीकृष्ण अपने धाम लौट गए, तो पांडवों की शक्ति और दिव्य अस्त्रों का प्रभाव भी कम होने लगा, क्योंकि वे सभी शक्ति और दिव्य अस्त्रों का प्रभाव भी कम होने लगा, क्योंकि वे सभी शक्तियॉं श्रीकृष्ण की ही थीं।
2. अर्जुन की परीक्षा एक बार जब अर्जुन, श्रीकृष्ण की पत्नियों को द्वारका से इंद्रप्रस्थ ले जा रहे थे, तब रास्ते में डाकुओं (भीलों के एक दल ने उनपर हमला कर दिया।
3. शक्तियों का अभाव:- श्रीकृष्ण के बिना, अर्जुन के दिव्यास्त्र और गांडीव धनुष भी अपना प्रभाव खो चुके थे। भील साधारण धनुष-बाणों से ही अर्जुन को पराजित करने लगे और उनकी पत्नियों को लूट ले गए।
4. समय का परिर्वतन:- यह घटना अर्जुन के लिए एक कड़ा सबक थी। महर्षि व्यास ने उन्हें समझाया कि अब कलियुग का आरंभ हो चुका है और श्रीकृष्ण के साथ ही अपनकी शक्तियॉं भी चली गई हें। अर्जुन का कर्तव्य पूरा हो चुका था और समय बदल चुका था।
5. प्रतीकात्मक अर्थ:- यह घटना दर्शाती है कि कैसे सत्ता, धन और भौतिक बल क्षणभंगुर होते हैं और कैसे समय ही सबसे बड़ा बलवान होता है। यह अर्जुन के अहंकार के अंत और युग परिर्वतन का प्रतीक है, जहॉं एक सामान्य भील भी महान योद्धा अर्जुन पर भारी पड़ सकता था।
मुख्य बिंदु:-
*अर्जुन का पराजित होना शक्ति के हृास और समय के प्रभाव को दर्शाता है।
*यह घटना पांडवों के स्वार्गारोहरण और कलियुग के आगमन का संकेत थी।
*यह बताती है कि दिव्य शक्ति के बिना, महानतम योद्धा भी साधारण परिस्थितियों में पराजित हो सकता है।
1. श्रीकृष्ण का जाना:- कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद, जब भगवान श्रीकृष्ण अपने धाम लौट गए, तो पांडवों की शक्ति और दिव्य अस्त्रों का प्रभाव भी कम होने लगा, क्योंकि वे सभी शक्ति और दिव्य अस्त्रों का प्रभाव भी कम होने लगा, क्योंकि वे सभी शक्तियॉं श्रीकृष्ण की ही थीं।
2. अर्जुन की परीक्षा एक बार जब अर्जुन, श्रीकृष्ण की पत्नियों को द्वारका से इंद्रप्रस्थ ले जा रहे थे, तब रास्ते में डाकुओं (भीलों के एक दल ने उनपर हमला कर दिया।
3. शक्तियों का अभाव:- श्रीकृष्ण के बिना, अर्जुन के दिव्यास्त्र और गांडीव धनुष भी अपना प्रभाव खो चुके थे। भील साधारण धनुष-बाणों से ही अर्जुन को पराजित करने लगे और उनकी पत्नियों को लूट ले गए।
4. समय का परिर्वतन:- यह घटना अर्जुन के लिए एक कड़ा सबक थी। महर्षि व्यास ने उन्हें समझाया कि अब कलियुग का आरंभ हो चुका है और श्रीकृष्ण के साथ ही अपनकी शक्तियॉं भी चली गई हें। अर्जुन का कर्तव्य पूरा हो चुका था और समय बदल चुका था।
5. प्रतीकात्मक अर्थ:- यह घटना दर्शाती है कि कैसे सत्ता, धन और भौतिक बल क्षणभंगुर होते हैं और कैसे समय ही सबसे बड़ा बलवान होता है। यह अर्जुन के अहंकार के अंत और युग परिर्वतन का प्रतीक है, जहॉं एक सामान्य भील भी महान योद्धा अर्जुन पर भारी पड़ सकता था।
मुख्य बिंदु:-
*अर्जुन का पराजित होना शक्ति के हृास और समय के प्रभाव को दर्शाता है।
*यह घटना पांडवों के स्वार्गारोहरण और कलियुग के आगमन का संकेत थी।
*यह बताती है कि दिव्य शक्ति के बिना, महानतम योद्धा भी साधारण परिस्थितियों में पराजित हो सकता है।
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