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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ आपकी सफलता हमारा ध्येय ✤|•༻
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भारतीय संस्कृति 'वसुधैव कुटुंबकम' को महत्व देती आई है। इसका अर्थ यह है कि पूरी धरती और उस पर बसने वाले सभी देश और उनके नागरिक एक परिवार हैं। अगर एक कुटुंब में कोई कमजोर है, कोई रोगी है, तो उसको फिर से स्वस्थ करना या उसकी सहायता करना इस कुटुंब का कर्तव्य है। अर्थशास्त्र में भी कहा जाता है कि अगर विश्व के किसी भी कोने में गरीबी है, तो वह पूरी दुनिया की समृद्धि और संपन्नता के लिए संकट पैदा कर सकती है। यह बात कितनी सच है, यह इक्कीसवीं सदी के इस आपाधापी वाले युग में नजर आने लगी है। किसी समय तीसरी दुनिया के उभरते हुए देशों को सहारा देने और उनके व्यवसाय को प्रगति देने के लिए समृद्ध देश अपना कंधा भिड़ा देते थे। कहीं उन्हें कर में रियायत मिल जाती, कहीं अनुदान मिल जाता और उनके पिछड़ेपन को दूर करने का प्रयास होता। इसके लिए अंतरराष्ट्रीय फलक पर कई वैश्विक मंच स्थापित किए गए। निश्चिय ही इन मंचों को स्थापित करने में अमेरिका और पश्चिमी देशों का योगदान रहा है, लेकिन धीरे-धीरे उनका अपना स्वार्थ प्रबल होता चला गया। भौतिकता के इस युग में केवल अपना घर ही नजर आने लगा। दूसरे का गिर जाए, तो भी क्या।
वैश्विक पटल पर कुछ वर्ष पहले डोनाल्ड ट्रंप उभरे और उन्होंने अमेरिका अमेरिकियों के लिए का नारा दिया। बिल्कुल उसी तरह अन्य पश्चिमी देशों ने भी अपने हित साधने पर ध्यान देना शुरू कर दिया। इस तरह गुट सापेक्ष राजनीति हावी होने लगी। इसमें गरीबी देशों की कोई परवाह नहीं थी। परिणाम यह हुआ कि उन सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तीसरी दुनिया के उभरते देशों को आर्थिक सहयोग मिलना बंद हो गया। समृद्ध देश अपने पुराने वादों से मुकरने लगे। जलवायु परिवर्तन दुनिया के लिए बहुत बड़े संकट के रूप में सामने आ रहा था। पश्चिमी देशों का रूख था कि इसका मुकाबला करने के लिए अधिक राशि देंगे, लेकिन बाद में वे इससे मुकर गए। उन्होंने यह भी चाहा कि जो प्रवासी उनके देश में आ गए हैं, उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाए। ऐसा हुआ भी अमेरिका ने यह कदम उठा लिया। इसे पूरी दुनिया ने देखा। फिर शुरू हो गया शुल्क संग्राम कहा गया कि हम पिछड़े हुए देशों से जो सामान मंगवाते थे, उन पर अब अधिक शुल्क नहीं देंगे, बल्कि संबंधित देश के बराबर या उससे अधिक शुल्क लगाएंगे। इस प्रकार पिछड़े हुए देशों के नियत के साथ उनके लघु, कुटीर उद्योगों और दस्तकारियों पर चोट पहुंची। जो देश पिछड़ गए थे, उनकी परवाह किए बगैर समृद्ध देश अंतरिक्ष में संसार बसाने की बातें करने लगे और अपने स्थानीय नागरिकों के लिए एक सुनहरा संसार रचने को प्राथमिकता देने लगे।
वैश्विक पटल पर कुछ वर्ष पहले डोनाल्ड ट्रंप उभरे और उन्होंने अमेरिका अमेरिकियों के लिए का नारा दिया। बिल्कुल उसी तरह अन्य पश्चिमी देशों ने भी अपने हित साधने पर ध्यान देना शुरू कर दिया। इस तरह गुट सापेक्ष राजनीति हावी होने लगी। इसमें गरीबी देशों की कोई परवाह नहीं थी। परिणाम यह हुआ कि उन सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर तीसरी दुनिया के उभरते देशों को आर्थिक सहयोग मिलना बंद हो गया। समृद्ध देश अपने पुराने वादों से मुकरने लगे। जलवायु परिवर्तन दुनिया के लिए बहुत बड़े संकट के रूप में सामने आ रहा था। पश्चिमी देशों का रूख था कि इसका मुकाबला करने के लिए अधिक राशि देंगे, लेकिन बाद में वे इससे मुकर गए। उन्होंने यह भी चाहा कि जो प्रवासी उनके देश में आ गए हैं, उन्हें वापस उनके देश भेज दिया जाए। ऐसा हुआ भी अमेरिका ने यह कदम उठा लिया। इसे पूरी दुनिया ने देखा। फिर शुरू हो गया शुल्क संग्राम कहा गया कि हम पिछड़े हुए देशों से जो सामान मंगवाते थे, उन पर अब अधिक शुल्क नहीं देंगे, बल्कि संबंधित देश के बराबर या उससे अधिक शुल्क लगाएंगे। इस प्रकार पिछड़े हुए देशों के नियत के साथ उनके लघु, कुटीर उद्योगों और दस्तकारियों पर चोट पहुंची। जो देश पिछड़ गए थे, उनकी परवाह किए बगैर समृद्ध देश अंतरिक्ष में संसार बसाने की बातें करने लगे और अपने स्थानीय नागरिकों के लिए एक सुनहरा संसार रचने को प्राथमिकता देने लगे।
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