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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH (MP) || ☺ || ༺•|✤ MP_ASI_HINDI_TYPING ✤|•༻

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दोषमुक्ति के विरूद्ध की गई अपील और राज्‍य तथा इस मामले में आवेदक की ओर से दी गई दलील पर विचार करते हुए अभियोजन साक्षी प्रीतम सिंह के साक्ष्‍य से एक पूर्व घटित घटना का पता चलता है जो मृतक और दोषमुक्‍त किए गए अभियुक्‍तों के बीच घटित हुई थी जिसमें दोषमुक्‍त किए गए अभियुक्‍तों ने मृतक के साथ अपशब्‍दों का प्रयोग किया था, उस पर हमला किया था और उसे जान से मारने की धमकी भी दी थी। इससे यह दर्शित होता है कि मृतक और दोषमुक्‍त किए गए अभियुक्‍तों के बीच शत्रुता चली रही थी जिसके कारण दोषमुक्‍त किए गए अभियुक्‍त मृतक की हत्‍या करने के लिए हितबद्ध थे किन्‍तु यह पर्याप्‍त सबूत नहीं है कि अभियुक्‍तों को षड्यंत्र के अपराध में आलिप्‍त किया जा सके। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 164 के अधीन पूर्व में अभिलिखित कथन के आधार पर षड्यंत्र के साक्ष्‍य को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष द्वारा कराई गई है, इन साक्षियों ने अभियोजन पक्षकथन का समर्थन नहीं किया है और उन्‍हें पक्षद्रोही घोषित किया गया है। दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 164 के अधीन कथन का प्रयोग सारभूत साक्ष्‍य के रूप में नहीं किया जा सकता क्‍योंकि ऐसा कथन अन्‍वेषण के प्रक्रम पर अभिलिखित किया जाता है। इस प्रकार ऐसे कथन की हैसियत एक पूर्ववर्ती कथन जैसी होती है कि उसे ऐसा कथन माना जाए जो विचारण न्‍यायालय के समक्ष दिया जाता है। दांडिक मामले में विधि के उपबंधों के अनुसरण में विचारण न्‍यायालय के समक्ष अभिलिखित साक्ष्‍य जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के अधीन अभिलिखित कथन सम्मिलित नहीं है, के आधार पर ही निर्णय दिया जाता है, इस संबंध में पुनरीक्षण आवेदन और दोषमुक्ति के विरूद्ध की गई अपील में प्रत्‍यर्थियों द्वारा मामले का अवलंब लिया गया है जो कि एक विधि का एक सुस्‍थापित सिद्धांत है और उसका अनुसरण किया जाना चाहिए।
    इस अधिनियम के अन्‍य उपबन्‍धों के अधीन रहते हुए कुटुम्‍ब न्‍यायालय को स्‍पष्‍टीकरण में निर्दिष्‍ट प्रकृति के वादों और कार्यवाहियों की बाबत, तत्‍समय प्रवृत्‍त किसी विधि के अधीन किसी जिला न्‍यायालय या किसी अधीनस्‍थ सिविल न्‍यायालय द्वारा प्रयोक्‍तव्‍य पूर्ण अधिकारिता होगी और वह उसका प्रयोग करेगा; कुटुम्‍ब न्‍यायालय के बारे में, ऐसी विधि के अधीन ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह ऐसे क्षेत्र के लिए, जिस पर कुटुम्‍ब न्‍यायालय की अधिकारिता का विस्‍तार है, यथास्थिति जिला न्‍यायालय या अधीनस्‍थ सिविल न्‍यायालय है। जहां कोई कुटुम्‍ब न्‍यायालय किसी क्षेत्र के लिए स्‍थापित किया गया है वहां धारा 7 की उपधारा (1) में निर्दिष्‍ट किसी जिला न्‍यायालय या अधीनस्‍थ सिविल न्‍यायालय को, ऐसे क्षेत्र के संबंध में, उस उपधारा के स्‍पष्‍टीकरण में निर्दिष्‍ट प्रकृति के किसी वाद या कार्यवाही की बाबत कोई अधिकारिता नहीं होगी या वह उसका प्रयोग नहीं करेगा। किसी मजिस्‍ट्रेट को ऐसे क्षेत्र के संबंध में, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अध्‍याय 9 के अधीन कोई अधिकारिता या शक्तियां नहीं होंगी या वह उनका प्रयोग नहीं करेगा। जो ऐसे कुटुम्‍ब न्‍यायालय की स्‍थापना से ठीक पहले, यथास्थिति उस उपधारा में निर्दिष्‍ट किसी जिला न्‍यायालय या अधीनस्‍थ सिविल न्‍यायालय के समक्ष अथवा उक्‍त संहिता के अधीन किसी मजिस्‍ट्रेट के समक्ष लंबित है। जो ऐसे कुटुम्‍ब न्‍यायालय के समक्ष या उसके द्वारा की जानी या संस्थित की जानी अपेक्षित होती यदि ऐसी तारीख से, जिसको ऐसा वाद या कार्यवाही की गई थी या संस्थित की गई थी, पहले यह अधिनियम प्रवृत्‍त हो गया होता और ऐसा कुटुम्‍ब न्‍यायालय स्‍थापित हो गया होता, ऐसे कुटुम्‍ब न्‍यायालय को ऐसी तारीख को अंतरण हो जाएगा, जिसको वह स्‍थापित किया जाता है। जहां मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के अनुसार ऐसा करना संभव है वहां प्रत्‍येक वाद या कार्यवाही में कुटुम्‍ब न्‍यायालय सर्वप्रथम यह प्रयास करेगा।

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