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vscti hindi court matter
created Mar 27th 2017, 11:04 by KuldeepTrivedi
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इस बारे में विधि सुस्थापित है कि न्यायालय को प्रथम इत्तिला रिपोर्टों या परिवादों को अभिखंडित करने की शक्ति का यदा-कदा ही प्रयोग करना चाहिए और इस शक्ति का मुख्यतया तभी प्रयोग करना चाहिए जब परिवाद या प्रथम इत्तिला रिपोर्ट से कोई अपराध न बनता हो। यदि प्रथम इतिला रिपोर्ट को सही पाया जाता है और इससे यह प्रतीत होता है कि कोई अपराध नहीं किया गया है तब भी न्यायालय इस अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है।
अभियुक्त द्वारा ऐसा कोई कार्य जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में किया जाना चाहिए और यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा स्थान एक लोक स्थान हो । यह एक ऐसा स्थान भी हो सकता है जो लोक स्थान नहीं है अपितु जनता को दृष्टिगोचर स्थान के अंतर्गत आता हो। कलक्टर का कार्यालय लोक स्थान नहीं हो सकता तथापि यह जनता को दृष्टिगोचर ऐसे स्थान के अंतर्गत आने वाला स्थान है जहां सामान्यतया लोग जाते हैं और कुछ समयों पर जनता नगरपालिका आयुक्त के कार्यालय में उपलब्ध होती है और कभी-कभी जनता ऐसे किसी स्थान पर उपलब्ध नहीं हो सकती और यह बात प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगी। न्यायालय के मतानुसार विधानमंडल इस तथ्य के प्रति सचेत था कि अपराध ऐसे स्थान में भी हो सकता है जो लोक स्थान न हो। इसलिए विधानमंडल ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1) (अ) में ने जानबूझकर ''जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में'' पद को लोक स्थान'' पद के रूप में समझने में गलती की गई थी। कोई लोक स्थान ऐसा स्थान है जहां सामान्यतया जनता को एकत्रित होने के लिए अनुज्ञात किया गया हो तथापि किसी व्यक्ति का कार्यालय, सदन या आबास कभी भी लोक स्थान नहीं माना जा सकता।
इस निर्णय में विद्वान एकल न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 12 से लोक शब्द की परिभाषा लेते हुए यह ठीक ही निष्कर्ष निकाला कि लोक स्थान वह स्थान है जहां सामान्यतया जनता किसी प्रयोजन के लिए या अन्यथा बिना किसी रूकावट के नियमित रूप से भले ही निरंतर नहीं आती-जाती हे। तथापि ''जनता को दृष्टिगोचर'' पद को ''जनता को दृष्टिगोचर स्थान में'' पद के समान मानकर गलती की गई थी। उदाहरण स्वरूप किसी व्यक्त्िा का आवासीय मकान लोक स्थान नहीं है किंतु यदि कोई व्यक्ति का आवासीय मकान लोक स्थान नहीं एवं लोगों को अपने मकान में विवाह के अवसर पर आमंत्रित करता है तो वह मकान उस अाधार पर जनता को दृश्टिगोचर स्थान बन जाएगा भले ही यह एक लोक स्थान न बना हो। ''लोक स्थान'' पद और ''जनता को दृष्टिगोचर'' पद के बीच स्पष्ट विभेद है।
अभियुक्त द्वारा ऐसा कोई कार्य जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में किया जाना चाहिए और यह आवश्यक नहीं है कि ऐसा स्थान एक लोक स्थान हो । यह एक ऐसा स्थान भी हो सकता है जो लोक स्थान नहीं है अपितु जनता को दृष्टिगोचर स्थान के अंतर्गत आता हो। कलक्टर का कार्यालय लोक स्थान नहीं हो सकता तथापि यह जनता को दृष्टिगोचर ऐसे स्थान के अंतर्गत आने वाला स्थान है जहां सामान्यतया लोग जाते हैं और कुछ समयों पर जनता नगरपालिका आयुक्त के कार्यालय में उपलब्ध होती है और कभी-कभी जनता ऐसे किसी स्थान पर उपलब्ध नहीं हो सकती और यह बात प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगी। न्यायालय के मतानुसार विधानमंडल इस तथ्य के प्रति सचेत था कि अपराध ऐसे स्थान में भी हो सकता है जो लोक स्थान न हो। इसलिए विधानमंडल ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(1) (अ) में ने जानबूझकर ''जनता को दृष्टिगोचर किसी स्थान में'' पद को लोक स्थान'' पद के रूप में समझने में गलती की गई थी। कोई लोक स्थान ऐसा स्थान है जहां सामान्यतया जनता को एकत्रित होने के लिए अनुज्ञात किया गया हो तथापि किसी व्यक्ति का कार्यालय, सदन या आबास कभी भी लोक स्थान नहीं माना जा सकता।
इस निर्णय में विद्वान एकल न्यायाधीश ने भारतीय दंड संहिता की धारा 12 से लोक शब्द की परिभाषा लेते हुए यह ठीक ही निष्कर्ष निकाला कि लोक स्थान वह स्थान है जहां सामान्यतया जनता किसी प्रयोजन के लिए या अन्यथा बिना किसी रूकावट के नियमित रूप से भले ही निरंतर नहीं आती-जाती हे। तथापि ''जनता को दृष्टिगोचर'' पद को ''जनता को दृष्टिगोचर स्थान में'' पद के समान मानकर गलती की गई थी। उदाहरण स्वरूप किसी व्यक्त्िा का आवासीय मकान लोक स्थान नहीं है किंतु यदि कोई व्यक्ति का आवासीय मकान लोक स्थान नहीं एवं लोगों को अपने मकान में विवाह के अवसर पर आमंत्रित करता है तो वह मकान उस अाधार पर जनता को दृश्टिगोचर स्थान बन जाएगा भले ही यह एक लोक स्थान न बना हो। ''लोक स्थान'' पद और ''जनता को दृष्टिगोचर'' पद के बीच स्पष्ट विभेद है।
