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BUDDHA ACADEMY TIKAMGARH-CPCT Speed test- SUBODH KHARE ''कमरा डार के सोंजियो भओ''

created Apr 7th 2017, 05:20 by SubodhKhare1340667


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बहुत पुरानी बात है। तब तो आज जैसे स्‍कूल थे और आज जैसी बड़ी-बड़ी दुकानों वाले बाजार, जहां सुई से लेकर तलवार बन्‍दूक तक हर चीज हर समय तैयार मिले। उस समय समाज का हर व्‍यक्ति अपना पुश्‍तैनी धंधा करता था यानी ब्राह्मण केवल पूजा-पाठ, कथा-भागवत से नाता रखता तो ठाकुर अपनो ठकुराई से। बढ़ई का लकड़ी से नाता था तो चमार का जूतों से। किसी ने किसी के धंधे में कभी टांग अड़ाई, ऐसा देखने को मिला, सुनने को। सभी एक दूसरे के सहारे जिन्‍दगी मजे में गुजार देते थे।
    ऐसे समय में एक गांव में एक व्‍यापारी को एक नई बात सूझी कि धंधे में जो आमदानी है, वह तो बहुत कम पड़ने लगी है, सो क्‍यों वह कुछ जमीन खरीदकर खेती भी करे। पैसे उसके पासथे ही, सो तुरन्‍त ही दस एकड़ जमीन खरीद डाली और सिंचाई के लिए एक कुआं भी खुदवा लिया। पर आगे हल-बख्‍खर और रहट में पैसा लगाने से कतरा गया। व्‍यापारी वृद्धि भिड़ाई ओर रास्‍ता निकाल लिया उसने। उसी गांव के एक बढ़ई को समझा-बुझाकर तैयार कर लिया कि वह हल-बख्‍खर ओर रहट बनाकर लगायेगा। व्‍यापारी और बढ़ई के बीच मुंह जबानी समझौता हुआ कि माल व्‍यापारी लगायेगा और काम बढ़ई करेगा और इसके बदले में बढ़ई को फसल का आधा हिस्‍सा मिला करेगा। समाज में बदनामी के डर से इस समझौते को बड़ा गुपचुप किया गया था। इस तरह वे आपस में सौजिया हुए।

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